कविता

भारतीय नववर्ष 

 बदलेगा नव वर्ष नया संवत आयेगा, 

कुदरत में भी रंग नया दिख जायेगा। 

चहकें चिड़िया और परिन्दे नीलगगन, 

कली- कली पर भौरा रास रचायेगा। 

झूमेगी सरसों खेतों में धानी चूनर ओढ़े, 

अंकुरित नव पात, पीत पत्र झर जायेगा। 

कोयल कुकेगी बागों में, आम वृक्ष बैठी, 

शीतल मन्द पवन का झौंका मन हर्षायेगा। 

 भारतीय नववर्ष विक्रम संवत से प्रारम्भ होता है। जो कि वर्तमान वर्ष से 57 वर्ष पूर्व से गिना जाता है| इस समय 2023+ 57= 2080 चल रहा है आगामी संवत का शुभारंभ 9 अप्रेल से शुरू होने वाला है। 2024+ 57= 2081 संवत। नये संवत का आगाज चैत्र मास यानि लगभग मार्च मे होता है | जब मौसम बदलता है, नयी फसले आती हैं। सर्दी का अन्त हो जाता है। कन्या पूजन नवरात्रो का आयोजन किया जाता है। जब भू गगन वायु अग्नि नीर यानि सम्पूर्ण प्रकृति उत्साह से भर नाच उठती है। वृक्षो से पीत पत्र झर जाते हैं, नयी कोपले फूटती हैं, तब होता है नव वर्ष। आप सबकी खुश मे शामिल हों अच्छा है, मगर क्या कभी अपना नववर्ष मनाया? वह नववर्ष जिसका आधार वैज्ञानिक है, प्रकृति से जुडा है। इस बार भारतीय नववर्ष भी इतने ही उत्साह से मनाये। पूजा पाठ, धर्म कर्म और हवन करें। 

हमारे नववर्ष पर शराब और मांस का प्रयोग नही होता है। निर्दोषों बेजुबानो को स्वाद के लिये मारा नही जाता है। हमारा नववर्ष मानवता को समर्पित है। दीन दुखी की सेवा करना ही मानवता है, यही सनातन है, यही हिन्दू धर्म है। तब जन मानस हा उठता है-

 बदला है नववर्ष, नया संवत आया है, 

कुदरत ने रंग रूप, नया दिखलाया है। 

फूल रहे हैं प्लाश, खेत में सरसों फूली, 

चहूँ ओर हरियाली, मधुमास आया है। 

सूख सूख कर पीत पत्र, वृक्षों से झडते, 

नव अंकुरण आस, नया संवत लाया है। 

महक रहा है बौर, आम पर कोयल कूके, 

हर्षित है हर किसान, खेत लहलहाया है। 

भौरें तितली घूम रहे, मकरन्द की आस में, 

मधुमक्खी मदमस्त घूमती, बसन्त आया है। 

छोडे कम्बल और रजाई, कोट- स्वैटर त्यागे, 

शीतल मंद पवन, हवा का झौंका आया है। 

घर- घर में होगा अन्न, धन- धान्य की वर्षा, 

चलो मनायें उत्सव, नया संवत आया है। 

करें प्रकट आभार प्रकृति का, पूजा करके, 

हो कन्या सम्मान, शास्त्रों ने बतलाया है। 

— डॉ अ. कीर्तिवर्धन