ग़ज़ल
दुआ में यही मैं सदा चाहती हूँ
खुशी से रहे घर भरा चाहती हूँ
गुजर जाएगी ज़िंदगी भी खुशी से
मगर हमसफर आपसा चाहती हूँ
नहीं चाहिए खार का मुझको मौसम
बहारों के घर का पता चाहती हूँ
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ हैं बहुत से
मिले जीत बस ये दुआ चाहती हूँ
भले पाँव मेरे जमीं पर हो लेकिन
मुकद्दर में अम्बर लिखा चाहती हूँ
ग़ज़ल से मुहब्बत मुझे ज़िंदगी में
न कम हो कभी वो नशा चाहती हूँ
रमा नफ़रतें बढ़ गई इस जहां में
चले प्यार की अब हवा चाहती हूँ
— रमा प्रवीर वर्मा