इंतजार
कोने वाले घर के बालकनी में
मैंने सूनी आंखों से ताकते
एक बुजुर्ग दंपती को देखा
उन सूनी आंखों में
बस बेबसी और सूनापन देखा
अपनो के आने का इंतजार
जाने कब ….
मौत के इंतजार में बदल गया !
बेहतर कल के खातिर
आज बच्चे दूर हो गए
कभी गुंजती थी जो किलकारियां
घर के कोने -कोने में …..
एक सूनापन पसरा है हर कोने में !
साल के चंद रोज आते हैं
जरूर मिलने को….
चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात
आता है उनके हिस्से में !
कल तक जिनको सिखाया चलने को
आज उनके लड़खड़ाने पर
कोई हाथ थामता ही नहीं !
बड़ी बेहिश हो गई है जिंदगी उनकी
अब मौत ही निजात दिलाए कहीं !
— विभा कुमारी “नीरजा”