कविता

कुदरत की अनूठी कृति : गौरैया

आज सुबह हमारी खिड़की के चौबारे पर एक गौरैया आई,
मैं बता नहीं सकती कि, मैंने कितनी खुशी पाई!
मैं रसोईघर से उसकी खुशी की चहचहाहट सुन रही थी,
उसके उड़ जाने के डर से खिड़की के पास नहीं आई॥
जानती थी कि, किसी के आने की आहट सुनकर,
वह बैठकर खुशी से चहचहा भी नहीं पाएगी।
हो सकता है कि, थोड़ी देर के लिए अवश्य बैठे फिर,
चहचहाना भूलकर-घबराकर फ़ुर्र से उड़ जाएगी॥
जब वह ज़ोर-ज़ोर से चहचहाने लगी तो मैं,
उसके बुलावे के निमंत्रण को अनसुना नहीं कर पाई।
जल्दी से रसोईघर का काम थोड़ी देर के लिए रोककर,
उससे मिलने को बिना आहट किए हौले से वहां आई॥
क्या अद्भुत था उसके रूप का नज़ारा,
मैंने उसके रूप की सुंदरता पर नयनों का नीर था वारा।
कुदरत की उस अनूठी कृति को हैरानी से देखकर,
मैंने उसकी सुंदरता को आंखों में था उतारा॥
कत्थई सुरमई-सा रंग था प्रभु से विरासत में था पाया,
पीले पैरों, पीली आंखों और चोंच ने गज़ब था ढाया।
उसे देखकर प्रकृत्ति की उस अनुपम कृति को देखकर,
मेरे मन ने कितना आनंद था पाया, मेरा मन कितना हर्षाया!

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244