फागुन
ये गुलाल-ए-सुर्ख़ लगाने दो मुझे तुम होली में,
बरसाने दो तुम पर रंग विसाल का इस होली में।
कहीं अबीर की खुशबू कहीं गुलाल का रंग,
मनाने दो रंग खुश्बो का त्योहार इस होली में।
ये किसने रंग भरा हर कली की प्याली में।
अब फागुन रंग झमकते है इस बार होली में।
होली की शाम ही तो सहर है बसंती की,
हर जगह पिचकारी और खुशरंगत इस होली में।
रंगीन फुवारे ,बूंदों में हर एक शक्ल जड़ी है,
वो शोख़ लिए रंग जो हाथों में खड़ी है,
पानी के बुझाए से न ये आग बुझेगी,
आओ अब गले लग जाओ इस होली में।
— बिजल जगड