भारतीय ज्ञान परम्परा तथा दबे पांव हृदयाघात और विक्रम एवं बेताल
सुप्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ और शल्य विशेषज्ञ डॉ. विक्रमादित्य को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आयोजित एक अन्तरराष्ट्रीय परिचर्चा में दबे पाँव हृदयाघात अर्थात् साइलेंट हार्ट अटैक: कारण, बचाव और निवारण विषय पर उद्बोधन हेतु आमन्त्रित किया गया था. अन्तरराष्ट्रीय स्तर के मात्र पांच चिकित्सकों और वैज्ञानिकों को वक्ता के रूप में आमन्त्रित किया गया था. इस दो दिवसीय आयोजन में प्रत्येक वक्ता को एक घंटे का व्याख्यान देना था और एक घंटे तक श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर देना था. आयोजन समिति ने सर्वश्रेष्ठ वक्ता को पांच लाख अमेरिकन डॉलर देने की घोषणा की थी. इसमें चिकित्सा, मनोविज्ञान, सामाजिक विज्ञान, शिक्षा, अनुसंधान, आयुर्वेद, वैकल्पिक चिकित्सा, जीवनशैली से जुड़े दो दर्जन प्रसिद्ध, प्रामाणिक तथा निष्पक्ष विशेषज्ञ निर्णायक मण्डल के सदस्य थे. लगभग एक हजार श्रोताओं के रूप में सभी देशों के सामान्य नागरिकों के अतिरिक्त अनेक विषयों के जानकार उस आयोजन में उपस्थित रहने वाले थे और लाखों श्रोता ऑनलाइन जुड़ने वाले थे. इस आयोजन में विक्रम ने सोच रखा था कि वह अपना भाषण भारतीय ज्ञान परम्परा के आधार पर प्रस्तुत करेगा. विक्रम को मोदीजी का व्हाट्स अप सन्देश मिला था कि “विक्रम ! आप सर्वथा योग्य हैं, हार-जीत की चिन्ता किए बिना आप अपना श्रेष्ठतम प्रदर्शन करिएगा. दूसरों से प्रतिस्पर्धा करके नहीं स्वयं से स्पर्धा से ही निर्दोष सफलताएं प्राप्त होती हैं.” विक्रम को ये शब्द बहुत उत्साहित कर रहे थे. विक्रम कई दिनों से इस विषय में तैयारी कर रहा था, परन्तु उसे मनचाही संतुष्टी नहीं मिल रही थी.
एक दिन विक्रम विचारों में मग्न आधी रात को घूमते-घूमते श्मशान जा पहुंचा और उसे अचानक बेताल की याद आ गई और वह प्रसन्नता के साथ बेताल से मिलने आगे बढ़ गया. उसने देखा कि बेताल रातरानी और रजनीगन्धा की सुगन्ध से भरपूर सरकारी वाटिका में युवा प्रेमी की तरह गीत गुनगुनाते हुए टहल रहा था, “इशारों इशारों में दिल लेने वाले, बता ये हूनर तूने सीखा कहाँ से.”
इतने में विक्रम ने वाटिका में प्रवेश किया और बेताल के पीछे खड़े होकर धीरे से बोला- मित्र बेताल ! कैसे हो?
बेताल- चौंकते हुए, पीछे मुड़ा और बोला- राजन ! आपने मुझे मित्र कहा !
विक्रम- हाँ मित्र, मैं अत्यधिक बेचैन और परेशान हूँ और इस समय तुम्हारी सहायता की बहुत आवश्यकता है.
बेताल- विक्रम ! तुमने मित्र कहा है तो अब चिन्ता छोड़ दो. श्रीरामचरितमानस में लिखा है कि जो व्यक्ति मित्र के दुःख से दुःखी नहीं होता, ऐसे व्यक्ति को देखने से ही बड़ा पाप लगता है. भगवान श्रीराम ने मित्रता निभाने के लिए सीताजी की ढूँढना छोड़ कर मित्र सुग्रीव के दुःख को पहले दूर किया था. मित्रता विपत्तियों, हृदयरोगों, अवसादों आदि से बचाने वाली बहुत अच्छी दवा है.
विक्रम- मित्र ! मुझे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में “दबे पांव हृदयाघात” यानी साइलेन्ट हार्ट अटैक पर व्याख्यान देना है.
बेताल अचानक जोर-जोर से हंसने लगा और बोला-मित्र ! इस चमन का अजीब माली है, जिसने हर शाख काट डाली है. आश्चर्य की बात है, सदियों की टाइम टेस्टेड लोक परम्पराओं को छोड़ दिया है और स्वस्थ लोगों को रोगी बना देने वाला सिस्टम रोगों को दूर करने की कोरी बातें कर, पूरी दुनिया के लोगों को बेवकूफ बनना चाहता है. खैर, मित्र ! स्व. दुष्यंत कुमार ने कहा है, मौत ने तो धर दबोचा, एक चीते की तरह. जिन्दगी ने जब छुआ, तो फासला रखकर छुआ.
विक्रम बोला-मित्र ! प्लीज मजाक मत करो.
बेताल- मित्र ! मजाक नहीं, सच कह रहा हूँ. मौत यदि दुःख या रोने-धोने का विषय है तो जीवन आनन्द या प्रसन्नता का विषय होना चाहिए. परन्तु वर्तमान में शहरी व्यक्ति बस, जैसे तैसे जीवन बीता रहा है. मानो जीवन को बोझ मानकर जबरदस्ती घसीटे जा रहा है. जीवन के आनन्द से तो उसने दूरी बना रखी है. इसीलिये दुष्यंत कुमार ने कहा है, मौत दबे पाँव चीते की तरह अचानक से आ जाती है परन्तु जिन्दगी यानी प्रसन्नता दूरी बनाए रखती है. विक्रम ! किसी भी शहरी सड़क पर निकल जाओ, किसी भी देश में, किसी भी दफ्तर में चले जाओ, तुम्हें अधिकतर उदास, दुखी, चिन्ताओं या गुस्से से भरे, या तनावपूर्ण अथवा घमण्ड और अकड़ से भरे चेहरे ही दिखाई देंगे. लोगों के चेहरों से हंसी गायब है. बिना कारण राम-राम, श्याम-श्याम भी नहीं करते हैं. क्या तुम इसे जीवन कहते हो? हाँ, गाँवों में, पहाड़ी क्षेत्रों में, वनवासी क्षेत्रों में, कम सुविधाओं के होते हुए भी तुम्हें लोगों के चेहरों पर एक अजीब-सी शान्ति, संतुष्टी, प्रसन्नता दिखाई देगी. किसी अजनबी से भी मिलते हैं तो मुस्काते हैं, नमस्ते या राम-राम करते हैं. और हाँ, वे लोग साइलेंट हार्ट अटैक से नहीं मरते हैं. वे लोग मेहनत तो खूब करते हैं, फिर भी असफलता मिलने से निराश नहीं होते बल्कि जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिए पर भरोसा कर तनाव को अपने पास फटकने नहीं देते हैं. जब समय मिले तो जापान के ओकिनोवा जाना, वे लोग एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीते हैं, और उद्देश्य होता है, दुःख-सुख को बांटना. ये जो शहरियों में अनावश्यक उदासी, दूसरों से जलन, गुस्सा, तनाव और घमण्ड है, ये ही दिल की खून की नलियों में चिपक कर उन्हें जाम कर देते हैं. वैज्ञानिक डॉ. स्टेफन पोस्ट कहते हैं कि कर भला तो हो भला, दूसरों को खुशियां देने ब्लडप्रेशर सामान्य होने लगता है और कारोनरी आर्टरीज भी चौड़ी हो जाती हैं.
एक गहरी सांस के बाद बेताल बोला- मित्र ! कुछ सालों पहले तक मैं हमारे भूतिया संसार में पांच वर्ष से छोटे अकाल मृत्यु से मृत लाखों बच्चों को देखा करता था, वे डिहाइड्रेशन यानी निर्जलन, उल्टी-दस्त अथवा न्यूमोनिया से मर जाया करते थे, परन्तु आजकल तो दस से चालीस साल के लोगों की हार्ट अटैक से हुई अकाल मौतों ने मुझे बेचैन कर दिया है. तुम्हें इसी पर भाषण देना है, यह मेरी भी रुचि का विषय है.
विक्रम- मित्र ! भगवान की कृपा है कि यह तुम्हारी रुचि का विषय है, अब तो तुम्हारी बातें मेरे लिए अत्यन्त ही महत्वपूर्ण सिद्ध होंगी. खुलकर बताओ.
बेताल- विक्रम ! मैं तुम्हें एक मेडिकल कॉलेज के अन्तिम वर्ष की कक्षा के विद्यार्थियों के फेफड़ों और दिलों में ले चलता हूँ. इन सभी विद्यार्थियों के सांस की गति [रेस्पिरेटरी मूवमेंट्स] देखो. हालांकि इन सभी ने फिजियोलॉजी में रेस्पिरेटरी मूवमेंट्स के विषय में न केवल पढ़ा है, बल्कि परीक्षा भी दी है, परन्तु फिजियोलॉजी की जानकारी के उलट अधिकांश विद्यार्थी जब सांस भीतर ले रहे हैं तो पेट बाहर नहीं आ रहा है. इसका अर्थ यह है कि डायाफ्राम जैसी भीतर सांस [इंस्पिरेशन] के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार मांसपेशी पूरी तरह उपयोग में नहीं आ रही है, इसतरह के आधे-अधूरे रेस्पिरेशन से फेफड़ें अपने शरीर के अंगों की ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं कर पाते हैं और ह्रदय को अधिक बार धड़कना पड़ता है. साथ ही ह्रदय को अधिक परिश्रम भी करना पड़ता है. ये दो कारण ह्रदय के फेलियर के लिए एक सीमा तक जिम्मेदार हैं. ऑक्सीजन की पूर्ति बराबर नहीं होने से आजकल बच्चों को थकान जल्दी आ जाती है, उनमें ताकत भी उम्र के हिसाब से कम होती है. सुनो विक्रम ! डॉ.ओट्टो वारबर्ग को कैंसर के कारणों की खोज के लिए 1931 का नोबेल पुरस्कार दिया गया था, उस खोज में बताया गया था कि कोशिका के स्तर पर ऑक्सीजन की कमी से कोशिकीय अम्लता हो जाती है. तुम तो जानते ही हो कि ऐसी स्थिति अधिक समय तक रहे तो एसिडोसिस की सम्भावना बढ़ जाती है. एसिडोसिस क्या-क्या कमाल शरीर में कर सकती है, ये बात तो डॉक्टर होने के नाते विक्रम ! तुम्हें मालूम ही है.
विक्रम- बेताल ! इन मेडिकल स्टूडेंट्स के दिल और शरीर को तो बराबर ऑक्सीजन मिल ही नहीं रही है और सभी अंगों को ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए ह्रदय को अधिक काम भी करना पड़ रहा है. तुम्हारा आब्जर्वेशन बिलकुल सटीक है और महत्वपूर्ण भी.
बेताल- मित्र विक्रम ! महर्षि वाग्भट्ट ने अपनी पुस्तक अष्टांग हृदयं में लिखा है कि रक्त की अम्लीयता ह्रदय रोग का कारण बन सकती है. इस विषय में तुम्हें शोध करना चाहिए.
विक्रम- बेताल ! मैं अवश्य ही इस दिशा में शोध करूंगा.
बेताल- मित्र ! अभी तो अनेक बातें बताना चाहता हूँ. तुम सुनते चलो, मुझे आज जल्दी है.
विक्रम- मित्र ! आज तुम्हें जल्दी क्यों हैं?
बेताल- मित्र ! सौ साल पहले आज ही के दिन मैं अपनी प्रेमिका अर्थात् पत्नी से पहली बार, इसी वाटिका में मिला था और आज वह मुझसे मिलने भी आई थी, उसी ने मेरा दिल चुराया था. इसीलिये मैं रातरानी के बगीचे में प्रेमगीत गुनगुना रहा था और अभी भी उसी प्रेम के नशे में हूँ. मित्र ! प्रेम बड़ी अजीब चीज है, होता एक से है और सारी दुनिया खूबसूरत और प्रेममय दिखाई देने लगती है, जित देखू तित तू, एक व्यक्ति से शुरू होता है परन्तु समूची सृष्टि ही अपनी लगने लगती है. प्रेम ही सहजीवन और सह अस्तित्व का महामंत्र है. चूँकि तुमने मुझे मित्र बोला तो मुझे लगा कि मित्रधर्म का निर्वाह करना मेरा प्राथमिक कर्तव्य है.
विक्रम- मित्र ! सौ साल पुराना प्रेम, आजकल तो कपड़ों की तरह प्रेमी और जीवनसाथी बदल जाते हैं.
बेताल-मित्र ! छोड़ो, मेरी बातें ध्यान से सुनो. आजकल न्यूक्लियर फैमिली वाले अभिभावक अपने प्यारे-प्यारे लाड़ले छोटे-छोटे बच्चों को अलग से कमरा दे देते हैं और वे बेचारे न केवल रात में बल्कि दिन में भी कई घण्टों तक अकेले रहते हैं और शोध बताते हैं कि अकेलापन और सामाजिक दूरियों से हृदयरोग, अवसाद सम्भव है और संज्ञानात्मक [चिंतन सीखना, स्मरण शक्ति आदि] कार्यों में कमी आ जाती है. इसलिए बच्चों के दिलोदिमाग में अपने माता-पिता के लिए ये गाना चलता रहता है, “कैसे कह दूं कि मुलाक़ात नहीं होती है. रोज मिलते हैं, मगर बात नहीं होती है. क्योंकि माता-पिता केवल अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की ही बातें करते हैं अथवा उनकी जिद को पूरी करने के लिए. ऑक्सीटोसिन वाला लाड़प्यार उन्हें मिलता ही नहीं है. बच्चें पंकज उधास की तरह सोचते हैं, दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है. हम भी पागल हो जाएंगे, ऐसा लगता है. आजकल पड़ोसियों से बातचीत होती नहीं है तो बेचारा बच्चा किसके साथ खेलें, मस्ती करें, धमा चौकड़ी करें. विक्रम ! ये बातें दिल को बहुत भारी पड़ती है.
एक दुःखभरी लम्बी सांस लेने के बाद बेताल बोला- मित्र ! तुलसीदासजी ने संगति के बारे में लिखा था “एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आध, तुलसी संगत साधु की कटे कोटि अपराध.” ऐसे में जब बच्चा अपने कमरे में मोबाइल की संगत में अकेला रहता है तो मोबाइल के भीतर बैठें, भूत-प्रेत-पिशाच उसके संगी-साथी बन जाते हैं और उसके भविष्य और स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव पड़ने लगते हैं. मोबाइल से दोस्ती जवान होने पर भी नहीं छुट पाती है, लागी छूटे न अब तो सनम, चाहे जाए जिया तेरी कसम.
बेताल ने बोलना जारी रखा, विक्रम ! तुमने देखा होगा कि आजकल मां-बाप अपने शिशुओं को कमोड पर बिठा दिया करते हैं. इजरायल के डोव सिकिरोव का कहना है कि कमोड की बजाय भारतीय तरीके से उकड़ू [स्क्वेटिंग] बैठने से शौच करने से बेहोशी तथा ह्रदय सम्बन्धी परेशानियों के कारण होने वाली मौतों के खतरों को रोका जा सकता है. मित्र ! कई लोग टॉयलेट में ही हार्ट अटैक से मर जाते हैं, क्योंकि ह्रदय पर सामान्य की तुलना में तीन गुना अधिक जोर लगता है.
विक्रम- मित्र ! बात तो सोचने वाली है.
बेताल- विक्रम ! बस, सुनते चलो, इन दिनों छोटे-छोटे बच्चों का बचपन खत्म हो गया है, उन्हें दो ढाई वर्ष की उम्र में ही अच्छे नर्सरी स्कूलों में भर्ती करवाने के लिए, घर के सभी सदस्य और घर पर आने वाले सभी रिश्तेदार उसे भर्ती के समय पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर रटाना शुरू कर देते हैं. उस बच्चे को इन प्रश्नों के सिवाय और कुछ भी नहीं दिखाई देता है, उसकी अनन्त सम्भावनाओं को पूरीतरह रोक दिया जाता है. भगवान ने जो प्रतिभा देकर उसे भेजा था, उस प्रतिभा का फूल खिलने से पहले ही मसल दिया जाता है. ये स्थितियां उसके मन-शरीर और भावनात्मक विकास तथा स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होती हैं. यह स्थिति लम्बे प्रभाव छोड़ती है.
बेताल ने बोलना जारी रखा- मित्र ! किसी अच्छे नर्सरी स्कूल में भर्ती करवाने के लिए और फिर स्कूल, होम वर्क तथा ट्यूशन के चक्कर में माता-पिता उसे मन्दिर भेजना भूल जाते हैं और बेचारा बच्चा भगवान नाम के दोस्त से दोस्ती ही नहीं कर पाता है. मित्र ! जानते हो, भगवान नाम की खूंटी का व्यक्ति के जीवन में कितना महत्व है, वह अपनी सफलताएं और असफलताएं टांग कर तनावों से मुक्त रह सकता है. न्यूरोसाइंटिस्ट डॉ. एंड्रयू न्यूबर्ग ने अपनी पुस्तक “हाउ गॉड चेंजेज योर ब्रेन” में लिखा है कि भगवान में आस्था से मस्तिष्क में रचनात्मक बदलाव होते हैं और व्यक्ति स्वस्थ होने लगता है. यह भी लिखा है कि भगवान पर भरोसे के बहुत सारे लाभ हैं, इससे व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य प्राप्त हो सकता है. इसीलिये पहले माता-पिता बच्चों को अपने साथ सुबह-शाम मन्दिर में ले जाया करते थे.
विक्रम- मित्र ! तुम्हारी बातों में दम है.
बेताल- मित्र ! अभी तो बहुत बातें बाकी हैं. आजकल माता-पिता अपने शिशुओं तक को बहुत ही प्यार से फास्टफूड खिलाते हैं, आधुनिकता के नाम पर जो चीजें नहीं खाना चाहिए और एसिडिक वस्तुएं एवं एसिडिक पानी खिलाते-पिलाते रहते हैं. जिनके कारण ह्रदय ही नहीं लीवर, गुर्दे आदि सभी अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है. इसके विषय में डॉक्टर होने के नाते तुम ज्यादा जानते हो.
विक्रम- हाँ, मित्र ! कुछ और बताओ.
बेताल- मित्र ! आजकल किशोर हो या युवा या प्रौढ़ सभी बिना भूख लगे ही कुछ न कुछ खाते रहते हैं. आयुर्वेद कहता है कि भूख लगे तो ही भोजन करें. मेडिकल साइंस भी यही कहती है. पहला भोजन अभी पेट में पड़ा ही है और पाचन संस्थान तैयार भी नहीं है, भूख भी नहीं लगी है. पर किसी ने ऑफर किया या कुछ खाने का दिखा तो उसे खाने की इच्छा जाग गई या फिर शाम के भोजन का समय होते ही लोग भोजन ठूंसने लगते हैं. कभी चार्ज मोबाइल को रिचार्ज नहीं करते हैं परन्तु पेट को गोदाम समझ कर चगरते [खाते] ही रहते हैं. जब भूख के मारे पेट में चूहे दौड़ने लगे [हंगर पेंग्स उठने] तब ही कुछ खाना चाहिए. क्योंकि ऐसी स्थिति में पाचन संस्थान भोजन को पचाने लिए तैयार रहता है. इस विषय में तुलसीदासजी का यह चौपाई सटीक है “आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह. तुलसी तहां न जाइए, कंचन बरसे मेह.I इसका अर्थ है कि देखते ही ह्रदय में प्रसन्नता नहीं हो और आँखों में स्नेह-सम्मान नहीं हो तो तुलसीदासजी कहते हैं कि ऐसी जगह मत जाइए, फिर चाहे सोना बरस रहा हो. यदि बिना भूख भोजन किया है तो उसका स्वागत करने के लिए पाचक रस है ही नहीं, शरीर को कोई खुशी नहीं है, तो ऐसी स्थिति में छप्पन भोग खाने से भी शरीर को कुछ मिलना नहीं है. उल्टा यह छप्पन भोग रोग दे सकता है. यदि तुम तुलसीदासजी की इस चौपाई की सच्चाई जानना चाहते हो तो किसी भूखे व्यक्ति को भोजन देकर उसके पेट में घुस जाओ, सब दिखाई देगा कि कैसे आमाशय भोजन के प्रवेश के पहले ही पाचक रसों के साथ सुस्वागतं की स्थिति में रहता है. भूखे व्यक्ति के चेहरे की चमक ही बता देगी कि उसका पेट, उसका शरीर भोजन के लिए कितना बेचैन था.
विक्रम- मित्र ! तुमने जो हंगर कॉन्ट्रैक्शन और तुलसीदासजी की चौपाई का रूपक दिया है, वह अद्भुत है.
बेताल- मित्र ! दिनभर-रातभर जब देखो तब कुछ न कुछ मुंह में डालते रहने के स्थान पर हर दिन दस बारह घण्टों का उपवास रक्त वाहिनियों और शरीर के सभी अंगों को स्वस्थ रखता है. प्रसन्नता के साथ, धन्यवाद के भाव से, शान्ति से बैठकर भोजन करना सिखाओ. भोजन एक संस्कार, पूजा है, अन्न ब्रह्म है, उसका आदर करना सिखाओ. दुनिया में करोड़ों लोग भोजन के लिए तरसते हैं. लाखों लोग भूखे रह जाते हैं.
बेताल ने बोलना जारी रखा-मित्र ! आजकल उच्च मध्यमवर्गीय लोगों में एक फैशन चला है, दो मंजिला घर में भी लिफ्ट लगवा रहे हैं. अचानक बेताल को गुस्सा आ गया और वह बोला- विक्रम ! वहां अपने भाषण में बोलना कि पूरे संसार में 60 वर्ष से कम आयु के लोगों के लिए लिफ्ट छठी मंजिल पर लगवाई जाए. केवल बीमार, अक्षम और वृद्धों के लिए लिफ्ट की सुविधा होना चाहिए. ये लिफ्ट न केवल मांसपेशियों बल्कि दिल, फेफड़ों और दिमाग को भी अशक्त बनाने का काम करती है. इस विषय में जर्मनी की प्रोफेसर हेइक टोस्ट के शोध के बारे में बताना.
बेताल थोड़ा रुका और बोला- मित्र ! मुझे तुम डॉक्टरों से बहुत नाराजगी है, बिना जाने, बिना सोचें समझें ही लाखों-करोड़ों लोगों को जहरीला रिफाइन्ड तेल खाने की सलाह देते हो. बिना शोध के ही मूंगफली, सरसों, तिल के फिल्टर्ड तेल पर एक तरह से पाबंदी लगा दी है. लोगों की थाली से देशी गाय का घी भी छीन लिया है. जब हरेक कोशिका को कोलेस्ट्रोल की आवश्यकता है और जीवनरक्षक स्टिराइड हॉर्मोन को बनाने के लिए शरीर को वसा यानी फैट की आवश्यकता है तो फिर भोजन से पर्याप्त फैट को क्यों गायब किया जा रहा है? एक और बात बताओ कि क्या मोटापे या ओबेसिटी सच में में रोग है? अफ्रीकी देशों में तो अधिकांश लोग मोटे होते हैं तो क्या वे सब रोगी हैं? कमाल है, यदि मोटा व्यक्ति अपने सभी रूटीन काम बिना थके, चुस्ती-फुर्ती के साथ कर लेता है और बिना किसी परेशानी के सामान्य कद-काठी के लोगों की तरह दौड़ सकता है तो वह स्वस्थ है. बिचारे मोटे लोगों के दिलोदिमाग में ये डाल दिया गया है कि उन्हें कभी भी उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, लीवर रोग हो सकते हैं, तुम्हीं बताओ क्या ऐसा अनिवार्य रूप से होता ही है. इन रोगों का डर क्या मोटे लोगों को अस्वस्थ नहीं कर देता है, क्या ऐसे रोग चिकित्सकजनित [आइट्रोजेनिक] रोग नहीं हैं?
विक्रम- मित्र ! ये आरोप बहुत गम्भीर और विचारणीय हैं और तुरन्त ही शोध किए जाने की आवश्यकता सिद्ध करते हैं.
बेताल ने आकाश में नक्षत्रों और फिर विक्रम की कलाई में बंधी घड़ी को देखा और जल्दी-जल्दी बोलने लगा – मित्र ! प्रेशर भी इस दबे पांव हृदयाघात का बहुत बड़ा कारण हो सकता है.
विक्रम- मित्र कैसा प्रेशर ?
बेताल-मित्र ! काम का प्रेशर, व्यापार का प्रेशर, प्रतिस्पर्धी का प्रेशर, टारगेट का प्रेशर, पढ़ाई का प्रेशर, परीक्षा का प्रेशर. किसी तरह से इस प्रेशर संस्कृति को खत्म करने की दिशा में सोचो. और ये कोचिंग क्लासेस तो प्लीज बन्द ही करवा दो. पढ़ाई, परीक्षा, दफ्तरों में टारगेट एवं काम इन सभी के बोझ से लोगों को छुट्टी दिलवा दो. पढ़ाई को मजेदार बनाओ. ताइवान में एक लम्बा अध्ययन हुआ है, लगभग चार लाख 81 हजार लोगों पर. पता चला है कि जो लोग लम्बे समय तक दफ्तरों में बैठकर काम करते हैं, उन्हें हृदयाघात होने की सम्भावना अधिक रहती है. जिम में उन्हीं लोगों को प्रवेश दिया जाए, जिनके फेफड़ें और ह्रदय प्राणायाम और योगासन से मजबूत हो चुके हों. और लोगों को यूज इट आर लूज इट नाम की सभी पुस्तकों के बारे में बताया जाए कि फेफड़ों, मस्तिष्क, ह्रदय, मांसपेशियों आदि का ठीक से उपयोग नहीं किया गया तो उनकी कार्य करने की क्षमता बहुत कम हो जाएगी. डिब्बाबन्द घरों की बजाय हवादार और धूप वाले घर होना चाहिए. धूप तथा हवा की कमी दिल को बहुत भारी पड़ती है तथा फेफड़ों को घुटन होने लगती है और अवसाद का कारण भी बनती है. बच्चों-बड़ों को हंसना सिखाओ, सुबह जल्दी जगाना शुरू करो, इंग्लैंड के प्रोफेसर माइक विडान और साथियों ने सात लाख लोगों पर किये अध्ययन के बाद बताया कि देर से जागने वालों को पागलपन, रुग्ण मानसिकता, मोटापा, मधुमेह और अवसाद का ज्यादा खतरा रहता है. और भी ढेरों शोधों के बारे में मुझे मालूम है, फिर कभी बात करेंगे.
गहरी सांस लेते हुए बेताल बोला- विक्रम ! बस, अब और नहीं. “आ अब लौट चले” को अपनाओ, अभी तो मैं चलता हूँ. एक अन्तिम शेर सुन लो, इसका जिक्र उस परिचर्चा में अवश्य करना-
मेरे दिल के किसी कोने में एक मासूम-सा बच्चा,
बड़ों की देखकर दुनिया बड़ा होने से डरता है.
विक्रम- मित्र बेताल ! मैं तुम्हारा जीवनभर ऋणी रहूंगा.
और पत्नीव्रता बेताल फिर से रातरानी और रजनीगंधा के बगीचे में अपनी यादों को ताजा करने जा पहुंचा.
— डॉ. मनोहर भण्डारी