लघुकथा

नैतिकता का ठेका

चतुर लाल जी पेशे से टीचर हैं। बीए, एमए, बी एड सब कर रखा है। फस्ट क्लास में। एमए गोल्ड मेडलिस्ट। हैं बड़े चतुर। हर चीज में फायदा ढूंढते रहते हैं। लेकिन घर में उनकी चतुराई की कोई कद्र नहीं, क्योंकि उनकी टीचरी से घर का राशन पानी भी बड़ी मुश्किल से चल पाता है। मैडम ने तो पहले ही धमका रखा है कि जिस दिन दिमाग गरम हुआ, मुंआ डिग्री को रद्दी वाले को बेच दूंगी। जो डिग्री नोट न ला सके भला उसका क्या काम? सरकारी नौकरी में अफसर बनने का सपना था। आईएएस बनने की कोशिश की। एक बार प्रीलीम्स निकला भी। लेकिन आगे सब फुस्स्स्स। उसके बाद कई सरकारी नौकरी के लिए ट्राई किया लेकिन सब बेकार। सरकारी नौकरी  मतलब गला काट कॉम्पिटीशन और एक अनार सौ बीमार वाली हालत। उमर रहते सरकारी जॉब नहीं मिली। ऊपर से परिवार था लोअर मिडिल क्लास। अंत में थक हारकर घर के बगल वाली गली के एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी करने लगे। किसी जमाने में सम्मान का पेशा अब बन गया है मजबूरी का  पेशा। विज्ञान और गणित छोड़कर सभी विषय को पढ़ाने का काम मिला। 

मां-बाप ने बुढ़ौती आते देख पहचान वाले के घर रिश्ता करवा दिया। फिर क्या था? दिन में तारे दिखने लग गए। मैडम की डिमांड ने बाजा बजा रखा था। स्कूल में नौवीं, दसवीं के छात्रों को पढ़ाते हैं। वैसे ज्योग्रफी उनका फेवरेट सब्जेक्ट है। तीस हजार सैलरी मिलती है। प्राइवेट स्कूल वैसे भी शिक्षा और योग्यता से ज्यादा मुनाफे पर फोकस करती है। इतनी-सी सैलरी और यह मंहगाई। इससे क्या होता है भला? उधर पहली सालगिरह में ही पापा भी बन गए। डर था कहीं बुढ़ौती के कारण बाद में पछताना न पड़े। खैर जो हुआ सो हुआ। आफत मोल ले ली है। हर दिन नाकामी को लेकर जली-कटी सुनना पड़ता था, सो अलग। चतुर लाल जी बड़े परेशान। सोचा एक्स्ट्रा प्राइवेट ट्यूशन कर लेते हैं। कई लोगों से मैसेज भिजवाया। पड़ोस में ही किफायती लाल के तीन बच्चों को एसएसटी पढ़ाने का काम मिला। शाम में सात से आठ बजे, सप्ताह में पांच दिन। चतुर लाल जी ने एक हजार प्रति बच्चा के हिसाब से तीन हजार रुपए महीने मांगा। किफायती लाल ठहरे कंजूस के नाना। सारा हिस्ट्री, ज्योग्राफिया पता कर रखा था। एक हजार रुपए के आगे टस-से-मस नहीं हुए। ‘भागते भूत  की लंगोट भली।’ चतुर लाल ने हां कर दी। ट्यूशन शुरू हो गई। सब ठीक चल रहा था। एक रात- ‘गंगा नदी पटना से निकलकर इलाहाबाद में गिरती है’ -चतुर लाल जी पढ़ा रहे थे। ‘अरे मास्टर साहब! ये क्या पढ़ा रहे हैं। गंगा नदी पटना से निकलकर इलाहाबाद में गिरती है?’ -किफायती लाल ने पूछा। ‘तो क्या? एक हजार रुपए महीने में गंगा गंगोत्री से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरेगी? जितने पैसे देंगे, गंगा उतनी दूरी तय करेगी’ -चतुर लाल जी ने जवाब दिया। ‘लेकिन आप टीचर हैं। आपको लालच शोभा नहीं देता है। गलत शिक्षा देना पाप है, अनैतिक है’ -किफायती लाल जी ने कहा। ‘वाह जी, वाह! पाप! लालच! नैतिकता! क्यों, टीचर आदमी नहीं है? उसका परिवार नहीं है? उसको रेस्पेक्टफुल लाईफ जीने का हक नहीं है? समाज में नैतिकता का ठेका क्या टीचर ने ले रखा है? किस पेशे  में नैतिकता बची है, जरा बताइए? जैसे जमाने में सब चीज की कीमत है, वैसे ही टीचिंग की भी कीमत है और यह बिल्कुल नैतिक है’ -चतुर लाल जी ने जवाब दिया। किफायती लाल अपने किफायती आइडिया पर सर खुजा रहे थे। 

— मृत्युंजय कुमार मनोज

मृत्युंजय कुमार मनोज

जन्म तिथि -3.8.1977 पेशा - सरकारी नौकरी (भारत सरकार) पता- टेकजोन-4, निराला एस्टेट ग्रेटर नोएडा (पश्चिम) उ.प.201306