लघुकथा

मनोबल

विश्वविद्यालय के वार्षिक छात्र संघ चुनाव में विजय जी की विजय हो गई थी. सब उन्हें जीत की बधाई दे रहे थे और विजय जी हाथ जोड़कर सबकी बधाइयां स्वीकार कर रहे थे. इसके साथ ही अपनी जीत का श्रेय अपने साथी मनोज को दे रहे थे, जिसके एक ही वाक्य से उसका मनोबल वर्धित हो गया था-
“विजय, तुम चुनाव लड़ने में इतना संकोच क्यों कर रहे हो! मध्यम वर्गीय परिवार से हो तो क्या हुआ, पढ़ाई में, खेल-कूद में, गीत-संगीत में, व्यवहार-विनम्रता में और सबसे बड़ी बात है अपने पक्ष को तर्कसंगत रूप से रखने में माहिर हो. हर तरह से लायक हो, खड़े हो जाओ.”
आज भी जीत की बधाई देकर मनोबल बढ़ाए रखने में मनोज सबसे आगे खड़ा था.

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244