लघुकथा

समय की बलि

“ये अंधेरा और इतनी उदासी किसलिए?” प्रकाश ने घर में आते ही ट्यूब लाइट ऑन करते ही किरण का मुरझाया चेहरा देखकर पूछा.
“संगीता का संगीत मौन हो गया.”
“क्या मतलब! क्या हुआ संगीता को?” प्रकाश भी धुंधला-सा गया.
“मुझे तो संगीता के लच्छन ठीक नहीं लग रहे थे, आज उसने हॉस्टल के कमरे में ही फांसी लगा ली.” अभी-अभी आपके भैय्या का फोन आया था.
“ओहो, यह तो बहुत बुरा हुआ! पर लच्छन के बारे में तुम ठीक कह रही हो. रोज नए-नए बहाने बना-बनाकर भैय्या से अनाप-शनाप पैसे मंगवा रही थी. मैंने भैय्या से से सचेत होने को कहा भी था, पर उनके पास पैसा था, परिवार के लिए समय नहीं था!”
“कुछ और कह रहे थे?”
“हां जी, कह रहे थे कि वार्डन ने कई बार फोन किया था कि संगीता शायद नशा करने लगी है, देर रात हॉस्टल में आती है. उसने बालुवा समयक के नीचे चिट लिखकर रखी है- “पापा, समय रेत की तरह फिसल गया, मेरी पढ़ाई नहीं हो पाई, इसलिए मैं जा रही हूं. मुझे माफ कर दीजिएगा और मुझे भूल कर भी याद मत कीजिएगा.”
“बहुत रो रहे थे. हमें अभी चलना होगा.”
“हां, मैं हाथ-मुंह धोकर आता हूं, भैय्या को इस समय हमारी सख्त जरूरत होगी. जो कैश रखा है, वह भी ले लेना.”
पता नहीं किस रौ में आज मैंने पहली बार ऐसी पंक्तियां लिखी थीं, मुझे क्या पता था, कि इतनी जल्दी ये सच भी हो जाएंगी!-
क्या पता था, समय रेत की तरह फिसल जाएगा,
अंधेरा झूमेगा-इठलाएगा, सूरज मुंह छिपाएगा,
कहा जुगनू ने अंधेरे से, न झूम-इठला यूं गफ़लत में,
समय सबका ही है आता, कभी तू मुंह की खाएगा!
“सचमुच समय रेत की तरह फिसल गया. अभी एक साल पहले तक संगीता हंसती-गाती गुड़िया-सी कॉलेज गई थी और अब समय की बलि चढ़ गई.” किरण तैयार होते-होते सोच रही थी.

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244