अश्कों को अपने सजा के रखते हैं
अश्कों को अपने सजा के रखते हैं – हम अपनी पलकों पर
मुसकराते हैं लबों से मगर – आंसुओं को अपने गिरने नही देते
इन्तेहा यिह ही है हमारी मोहब्बत की – ज़िन्दगी में आप के लिये
गिले शिकव़े लाख हैं दिल में मगर – ज़ुबान को हम कहने नही देते
घूमते रहते हैं हम अकेले व़ीरानों में – अपने ग़मों को साथ ले कर
राज़ रखते हैं छुपा कर सीने में – दिल को किसी को बताने नही देते
बरबाद कर के रख दे गी हम को – यिह बे रुख़ी ही हमारे दिल की
पडे रहते हैं अकेले ही धर में – अपने आप को किसी से मिलने नही देते
बे ताब रहते हैं हम हमेशा ही – आप की बे दाद मोहब्बत में
ताज़ रखते हैं ज़ख्मों को कुरेद कर – हम इन को भरने ही नही देते
सबब क्या बताऐॅं हम दुनिया को – उनकी बे व़फ़ाई का
मोहर खामोशी की लगा रखी है – अपने लबों को कुछ कहने नही देते
बहुत बार चाहा बियान कर दें हम – दास्तान अपनी बे बससी की मदन
मगर क्या करें झूठ हम बोलते नही – और सच व़ोह कहने नही देते
मिलना दर्द का अपनों ही से – यह तो अब एक कहने की बात है
यादें जगा के रखती हैं दर्द को – और यादों को हम भूलने नही देते
— मदन