कर्जमाफी
“नमस्कार मैनेजर साहब।” मैनेजर के चैंबर में घुसते हुए मुखिया जी बोले।
“नमस्कार, आइए-आइए, ठाकुर जी। बैठिए। बताइए क्या सेवा करूँ आपकी ?” गाँव के मुखिया ठाकुर जी को मैनेजर साहब अच्छे से पहचानते थे।
“मैनेजर साहब, हमें आपके बैंक से 2 लाख रुपए का कर्ज चाहिए ?” ठाकुर जी बोले।
“दो लाख रुपए का कर्ज …. ? ठाकुर साहब आप मजाक तो नहीं कर रहे हैं ? आपके खुद के एकाऊंट में 30 लाख रुपए से अधिक की राशि जमा हैं, और आप दो लाख रुपए का कर्ज लेने की बात कर रहे हैं ?” मैनेजर साहब चकित थे।
“हाँ मैनेजर साहब, मुझे सब पता है। आप तो हमें लोन के फॉर्म दे दीजिए। इस बार हम खेती पर जमा पूँजी खर्च न कर कर्ज के पैसे ही खर्चेंगे। और हाँ, पाँच फॉर्म दीजिएगा। हमारे बाबूजी, मुझे, ठकुराइन और दोनों बेटों, सबके लिए 2-2 लाख रुपए, मतलब कुल दस लाख रुपए का कर्ज चाहिए।” ठाकुर साहब अपनी ही रौ में बोलते गए।
“ठाकुर साहब, पाँच क्यों ? ये तो आप लोगों में से किसी भी एक के नाम से हम दस लाख रुपए का कर्ज दे देंगे। फिर ये 5-5 लोगों के अलग-अलग लेने की क्या जरुरत है ?” मैनेजर साहब समझाते हुए बोले।
“मैनेजर साहब, आप तो हमें पाँच ही फार्म दे दीजिए।” ठाकुर साहब बोले।
“ठीक है, जैसी आपकी मर्जी। क्या मैं इसकी वजह जान सकता हूँ ?” जिज्ञासावश मैनेजर साहब ने पूछ लिया।
“देखिए मैनेजर साहब, आपको तो पता ही है कि अगले साल हमारे राज्य में विधानसभा चुनाव हैं।” ठाकुर साहब बोले।
“हाँ, पर इससे आपके कर्ज का क्या संबंध है ?” मैनेजर ने पूछा।
“संबंध है मैनेजर साहब। अब पूरे देश में यह परिपाटी-सी बन गई है कि किसी भी राज्य में विपक्षी पार्टी की सत्ता में वापसी तभी हो रही है, जब वह अपनी घोषणा-पत्र में किसानों का कर्जमाफी को एक मुख्य मुद्दा के रूप में शामिल कर रही है। हमारे राज्य में भी सत्ताधारी पार्टी की दो पारियाँ हो चुकी हैं और पूरी संभावना है कि विपक्ष इस पर कब्जा करने के लिए किसानों के कर्जमाफी को एक मुद्दा बनाएगा। समझ रहे हैं न आफ ?” ठाकुर साहब समझाते हुए बोले।
“ठाकुर साहब, आप चाय लेंगे या ठंडा ?” मैनेजर ने उन्हें पाँच फॉर्म देकर मुसकराते हुए कहा।
— डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा