अंतरात्मा की आवाज
लघुकथा
अंतरात्मा की आवाज
“भैया जी, दस कॉटन मास्क, बारह सेनिटाइजर और बारह डिटॉल हैंडवॉश दे दीजिएगा।” जगतसिंह ने कहा।
“सर, इतना सारा सामान लेकर क्या करेंगे ? दुकान खोलने का इरादा है क्या ?” मेडिकल स्टोर संचालक ने मजकिया अंदाज में पूछा।
“नहीं भाई। सुरक्षा के तौर पर रख लूँगा घर में। आप तो देख ही रहे हैं कोरोना वायरस का कहर।” जगतसिंह ने बताया।
“हाँ, सो तो है सर। पर सॉरी, मैं आपको दो-दो से अधिक चीजें नहीं दे सकता।” मेडिकल स्टोर संचालक ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
“देखिए, मैं आपको पूरी कीमत देकर लूँगा। कोई छूट भी नहीं चाहूँगा। आप चाहें, तो मुझसे कुछ एक्स्ट्रा पैसे भी ले लें, पर पूरे सामान दे दीजिए।” उन्होंने चापलूसी भरे लहजे में कहा।
“सॉरी सर। मैं व्यापारी जरूर हूँ, परंतु अपनी अंतरात्मा की आवाज को नजरअंदाज नहीं कर सकता। आप यह मत भूलिए कि जब यह बीमारी क्षेत्र में फैलेगा, तो आप अछूते नहीं रह सकेंगे, चाहे कितनी ही सावधानी बरत लें।” मेडिकल स्टोर संचालक की बात सुनकर जगतसिंह चुपचाप पैसे देकर सामान ले वहाँ से निकल गया।
- डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़