मायका
मायका
“सुनो जी, मैं सोच रही थी कि इस बार क्यों न हम लोग हम रक्षाबंधन की बजाय पापा की बरसी पर भारत जाएं।” नेहा अपने पति रमेश से बोली।
“देखो नेहा, तुम तो जानती ही हो कि पापा जब तक हमारे बीच रहे, वे हमेशा कहते रहे कि हमारे बाद रुचि के पापा-मम्मी रमेश और नेहा ही होंगे। हम अमेरिका में हैं, तो क्या हुआ हमारी रगों में भारतीय संस्कृति बह रही है। मैं नहीं चाहता कि रुचि को लगे कि पापा के बाद उसका मायका नहीं रहा। मैंने अपनी मम्मी और तुम्हारे भैया को बता दिया है कि हम इस बार राखी पर आ रहे हैं। मम्मी ने भी कहा है कि पापा की बरसी पर भले मत आना, पर राखी में जरूर आना।” रमेश बोला।
“मैं सोच रही हूं कि क्यों न मम्मी जी को हम यहीं बुला लें। पापा के बाद वे वहां अकेली-सी हो गई हैं। यहां रहेंगी तो हम उनकी ओर से निश्चिंत रहेंगे। बच्चों के साथ उनका मन लगा रहेगा। बच्चों को भी अच्छा लगेगा।” नेहा बोली।
“हां, पर मां वहां गांव की खेती किसानी छोड़ कर शायद ही यहां आए।” रमेश ने आशंका जताई।
“आप मम्मी जी से बात तो करके देखिए। गांव की खेती किसानी की जिम्मेदारी रुचि और दामाद जी को सौंपी जा सकती है। ईश्वर की कृपा से हमें तो कोई कमी है नहीं। सो खेती-बाड़ी से जो भी आय होगी, वह रुचि और दामाद जी की होगी। वैसे भी मां जी के लिए जैसे आप हैं, वैसे ही रुचि भी है।” नेहा बोली।
“हां, बात तो तुम्हारी सही है। अभी बात करता हूं मां से।” अब वह अपनी मां को काल करने लगा।
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़