वृद्ध़ावस्था में आहार
वृद्ध व्यक्तियों से हमारा तात्पर्य 65 वर्ष या अधिक उम्र के ऐसे लोगों से है, जिनकी पाचनशक्ति बहुत निर्बल हो गई है और जिनके दाँत नहीं हैं या भोजन को चबाने में असमर्थ हैं। ऐसे व्यक्तियों को अपने आहार के चुनाव में बहुत सावधानी रखनी पड़ती है, क्योंकि सब कुछ खाने और पचा लेने की सामथ्र्य उनमें नहीं होती।
वृद्ध लोगों को ऐसे भोजन की आवश्यकता होती है, जो अधिक से अधिक तरल अवस्था में हो, ताकि उसे वे सरलता से पचा सकें और जो उनके शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति भी करता रहे। इस उम्र में मोटापा बहुत कष्ट देता है और अधिक चलने-फिरने में भी कष्ट होता है। इसलिए उनके आहार में ऐसी वस्तुएँ होनी चाहिए, जिनमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा बहुत कम हो तथा विटामिन और खनिज पर्याप्त हों, ताकि शरीर में इन चीजों का अभाव न हो।
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए व्ृद्धावस्था का आदर्श भोजन चार्ट निम्न प्रकार हो सकता है-
जलपान (प्रातः 8-9 बजे) – पतला नमकीन दलिया, दूध का दलिया, इडली, उपमा, मुलायम फल या उनका जूस आदि में से कोई एक बदल-बदलकर लें। साथ में अपनी रुचि के अनुसार एक कप दूध या मठा (छाछ) ले सकते हैं। यदि चाय से बच सकें तो बेहतर है, नहीं तो दूध या मठा की जगह चाय ले सकते हैं, पर उसमें अधिक चीनी न हो।
दोपहर का भोजन (दोपहर 1-2 बजे)- एक या दो पतली सब्जी, रोटी, दही। इनमें एक हरी सब्जी अवश्य हो। कभी-कभी दाल-चावल भी ले सकते हैं। यदि चाहें तो इनके साथ एक पापड़ भी ले सकते हैं। यदि मीठा खाने का मन हो तो दही में बूरा डाला जा सकता है या मीठा हलुआ ले सकते हैं, परन्तु पूडी-कचै़ड़ी, चोखा-बाटी, चीला, छोले-भटूरे आदि से बचना चाहिए। यदि रोटी को सीधे चबा न सकें, तो उसके छोटे-छोटे टुकड़े करके सब्जी या दाल में डालकर गला लेना चाहिए।
जलपान (सायं 4-5 बजे)- कोई मुलायम मौसमी फल या फलों का जूस। पकौड़े या समोसे या नमकीन तभी खा सकते हैं, जब इनको चबा सकें। इनको भोजन की तरह न लें।
रात्रि भोजन (रात्रि 7-8 बजे)- एक सब्जी और रोटी या केवल खिचड़ी या केवल उबली सब्जी। खिचड़ी के साथ थोड़ा दही लिया जा सकता है, पर वह खट्टा नहीं होना चाहिए। रात्रि में भारी वस्तुएँ खाने से बचें।
वृद्धावस्था में हर प्रकार के फास्ट फूड या जंक फूड और मिठाइयों से दूर रहना चाहिए। कभी-कभी आइसक्रीम या कुल्फी ली जा सकती है।
हर खाद्य वस्तु को मसूड़ों से खूब चबाना और चुभलाना चाहिए, ताकि वह तरल और सरलता से पाचनयोग्य हो जाये। कभी भी खाने और निगलने में जल्दबाजी न करें। वस्तुएँ अपनी भूख के अनुसार ही लेनी चाहिए। भूख से थोड़ा कम खाना बेहतर है, लेकिन भूख से अधिक कभी न खायें, चाहे वस्तु कितनी भी स्वादिष्ट हो और मुफ्त में मिल रही हो। यदि कर सकें, तो सप्ताह में एक दिन केवल फलों के जूस या सूप पर रहें। इससे सप्ताहभर में हुई खान-पान की गलतियों का निवारण हो जाता है।
खाया हुआ भोजन आपके अंग लगे और शरीर स्वस्थ रहे, इसके लिए प्रतिदिन कुछ टहलना और व्यायाम करना आवश्यक है। इनकी चर्चा आगे के किसी लेख में की जाएगी।
— डाॅ. विजय कुमार सिंघल
चैत्र कृ. 6, सं. 2080 वि. (31 मार्च, 2024)