शब्दों का मायाजाल
शब्द भाव ,अनुभाव ,विभाव ,संचारी भाव हैं
शत्रुता का माध्यम और प्रेम का आगार हैं
शब्द यदि मौन हो जाए तो मृत्यु
शब्द की ध्वन्यात्मकता ज़िंदगी का स्त्रोत है
शब्द अनकहे,अनछुए
जज़बातों को दर्शाने का माध्यम
मौन को मुखर
और
मुखर को भाव पूर्ण करने का साधन
हृदय के उद्गारों का प्रगटीकरण है
दर्द के सागर में उठती तरन्गों को
ध्वनित करने वाला कारक
क्रोधाग्नि प्रज्जवलित करने वाला ब्र्ह्मास्त्र
और क्रोधाग्नि को शान्त करने वाला
शीतल, निर्मल नीर है
रे मानव !
समझ इसकी विराटता, गहराई
समझ इसका मूल्य
परख , तौल
फिर
शब्द जो फूटेगे कन्ठ से
सात्विक सत्य से पगे
सार्थक
और प्रेम से सने होंगे
चहुँ ओर उजास ही उजास होगा ||
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’