कहानी – बिखरे मोती
बनी बनाई चीजों को तोड़ना और फिर जोड़ के देखना, छोटे भाई के खिलौने को लेकर दूर भाग जाना, कभी स्विच बोर्ड पर हाथ फेरना, तो कभी गैस की मरामाती करना , कभी टीवी के पुर्जे पुर्जे खोल उससे वाकिफ होना तो कभी रिमोट को ही अपना खिलौना मान बैठाना ऐसा था कुछ सिवान का व्यवहार..।
वह किसी भी वस्तु की गहराई को जानते-जानते उसे छितर बितर कर देता था। माता-पिता उसके इस रवैये को देख अक्सर दो-चार बातें भी सुना देते। पिता के साथ कभी फैक्ट्री भी जाता तो उसका यह रवैया देख व्यंग्य करते हुए कह भी देते ” कब तक तोड़ते रहोगे, कभी जोड़ना भी सीख जाओ।” लेकिन अंदर की गहराइयों को जानने की लालसा न जाने कितनी ही मशीन को भी अब तक उसने तोड़ डाली होगी। उसके इस रवैया को देख बड़े परेशान रहते।
वक्त के साथ ही उसने शोध कार्यों में निपुणता भी प्राप्त कर ली। लेकिन पिता के बेवक्त मौत ने उसे जब झकझोर दिया। रईस खानदान में बचपन से पला सिवान के लिए यह फैक्ट्री चलाना ,परिवार की ज़रूरतें को पूरा करना दांतो तले उंगली चबाना जैसे था। मात्र तीन वर्षों के अंदर ही पूरी फैक्ट्री तहस-नहा सी हो गई ऐसा प्रतीत हुआ कि “सचमुच आय ना की जाए तो सोने का खदान भी खाली हो सकता है।”
घर की स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती ही चली गई। परिवार की जिम्मेदारियां सिवान के लिए मनो पत्थर पर सर फोड़ना जैसा हो गया लेकिन उसकी नवाबी आदत कभी ना बदली। वही 11:00 बजे उठना कर्मचारियों पर कंपनी का भार सौपना और सूरज की लालिमा डूबने के साथी ही देर रात तक उनके साथ कर्मचारियों के साथ मटरगश्ती करना ।आधी रात नशे में धूर्त खानदान की बारिश को देख मां का कलेजा छलनी हो उठता। घंटो वक्त, परिस्थितियों, जिम्मेदारियां को समझने के बाद भी उस पर चींटी तक न रेंगता।
जिससे धीरे-धीरे मां का झुकाव छोटे भाई (टिंकू )की तरफ होता गया। परिस्थितियों ने उसे इस राह पर लाकर खड़ा कर दिया कि पति की बनाई किराए के मकान से मात्र ₹5000 में ही घर की सारी ज़रूरतें पूरी करनी पड़ती। यह सब देख मां ( रीता ) को बहुत बुरा लगता ।वह मन ही मन सोचती यदि पिता ( रमेश ) ने सही वक्त पर सिवान की लगाम लगाई होती तो आज उनकी संपत्ति को देखने वाला कोई तो होता।
शिवान भी अब अपने आप से कुछ परेशान सा रहने लगा।फैक्ट्री की स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही थी।एक तरफ शिवान फैक्ट्री की हालत ,उसकी अपनी ज़रूरतें , तो भविष्य की चिंता सोच,उसपर मां का बदला हुआ व्यवहार देख अपने आप में ही कचोट कर रह जाता । “क्या करूं, कैसे करूं, कैसे चलेगा परिवार!”
उसे पर मां और र्टिंकू का ताना सबसे जूझता शिवान…उफ़ दो जोड़ी कपड़े, अपनी बड़ी सी मोबाइल और कुछ पैसा लेकर घर से रेलवे स्टेशन की ओर निकल पड़ा । इंतजार किसी पैसेंजर ट्रेन की ही थी किसी तरह कम में शहर पहुंच जाऊं। वहां कुछ तो कर ही लूंगा ,मिल ही जाएगा…
इतने में उसकी मुलाकात रेलवे में बिहारी लाल से हुई जो खुद को नामी गिरामी फैक्ट्री का कर्ताधर्ता बताये। सिवान की हवा हवाई बातों से प्रभावित होकर बिहारी लाल ने अपनी कंपनी में कार्य करने की इच्छा जाहिर की । शिवानी ने बिना वक्त गंवाए झठ से हमी भर ली।
बिहारी लाल ने अपने साथ शिवान को फैक्ट्री में लाया। शिवान के लिए अधिकांशत सब कुछ जाना पहचाना सा था वही गोदली गोधूलि बेला में अधूरा काम का बुरा देना अगली सूरज की स्वागत पाक के साथ सलामी देते हुए करना और फिर जुगनू के अंधेरे तक मानव नशे की बाउचरों में कितनी ही भर करवटें ले लेना में कब आंख लग जाती है वक्त की कुछ सूर्य ज्यादा ही इसी तरह कट रहा था वक्त के साथ-साथ वह छोटे-छोटे बमों से लेकर विभिन्न तरह के उपकरण भी बनाने लगा खरीद बिक्री का तो वहां कोई सीमा
गोधूलि बेला में बिहारी लाल से मिलने एक खरीदार चौपट लाल पहुंच बातों ही बातों में चौपट लाल ने भारी रकम की बम की इच्छा व्यक्त की जो एक आतंकवादी हमले के लिए अनिवार्य अनिवार्यता दिखाएं इसके साथ ही उसने एक ऐसी व्यक्ति की इच्छा जाहिर की जो खलास कर सके ऐसा व्यक्ति चाहिए जो क्लास कर सके. साल की बातें सुन बिहारी लाल भी सच में पड़ गए हो तो बताना इतने में बिहारी लाल ने शिवम की तरफ इशारा किया चौपट लाल ने भी सिवान की हवा हवाई बातें सुन फॉरेन सुपारी की बात साझा किया शिवान दंग रह गया!
साहब!
2 मिनट में 5 लाख
साहब… मैं अपना पेट पालने के लिए बम तो जरूर बना रहा हूं ,लेकिन अपने देश के साथ गद्दारी नहीं कर सकता। मैं किसी की जान नहीं ले सकता ।
सिवान ..
साहब मेरा जमीर इतना हल्का नहीं! मैं भारत का नागरिक हूं ,भारतीय होना मेरा गर्व है। मैं इसके सम्मान को चंद पैसों के लिए मिट्टी में नहीं मिला सकता।
चौपट लाल ने नम स्वर में कहा — ये क्या बोल रहे हो तुम!हां साहब, बम बनाने में मैं निपुण जरूर हूं लेकिन उसका सही उपयोग होना हम यू देशवासियों का ही कर्तव्य है। दुश्मनों से से अपनी सुरक्षा के लिए ना कि चंद दुश्मनी की वजह से किसी निहत्थे की जान ली जाए।
सिवान बस!
अपनी जान खतरे में देख वह फौरन पुलिस स्टेशन में इमरजेंसी मैसेज कर दिया। पलक झपकते ही पुलिस की सायरन सुन सभी वहां से नौ दो ग्यारह हो गए ।
पुलिस के देख शिवान ने उनकी रिकॉर्ड को ही बातें सुनाया । फैक्ट्री पर किसी आने जाने वालों का पाबंदी लगा दी गई। लेकिन अब सिवान का इस शहर में रहना खतरों से खेलना था, जिससे न चाहते हुए भी उसे पुराने घर उसे पुनः मां के पास आना पड़ा।
मां तो मां ही होती है, अचानक लंबे वक्त बाद सिवान को पुलिस इंस्पेक्टर के साथ देख मां की आंखें फटी की फटी रह गई। नम आंखों से यही स्वर निकला–” कहां था तू इतने दिन और आज पुलिस के साथ!”
इतने में पुलिस इंस्पेक्टर ने मां को सारी बात बताई। जिससे मां का हृदय को एक तरफ सांत्वना तो मिली, उनका अपना अच्छा बेटा ना बन सका तो क्या , सच्चा देशभक्त तो बना!
वही छोटा भाई टिंकू विद्यालय में फॉरगेट की नौकरी में कार्यरत हो चुका था । यह देख शिवान भी इनाम के मिले पैसे से अपनी रोजी-रोटी के लिए एक छोटी सी दुकान खोल दिया और वक्त के साथ ही धीरे-धीरे परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारती गई पुनः परिवार पटरी पर आ गया । दोनों बच्चे के साथ मां भी हमेशा रहने लगी
— डोली शाह