हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – निंदिया की डोर, सपनों का पालना

‘नींद’ !अहा..हा..कितना मादक शब्द है!कितनी शांति पगी है इस शब्द मे। यह नाम ज़हन मे आते ही गज़ब की खुमारी आ जाती है,वातावरण मे।रोम -रोम अलसाने लगता है।प्रकृति सुस्ताने लगती है।सारा शहर अँगड़ाईयां लेता प्रतीत होता है।चारों तरफ जम्हाइयों के नजारे नज़र आने लगते हैं।सरकारी टेबलों पर जमे झोंके खाते बाबुओं और निद्रा लाभ ले रही फाईलों के चित्र खिंच जाते हैं।रेलों और बसों मे समाई ऊँघान याद आ जाती है। नींद पर जोर नहीं।इश्क के समान नींद का जादू भी सर पर चढ़ कर बोलता है; बल्कि यह तो आँखों पर भी चढ़ कर बोलता है।
नींद प्रेमियों के लिए न कोई समय आड़े आता है,न मौसम और न ही जगह।बरसात मे बाहर पानी बरस रहा है,सो जाइये,ठंड के मौसम मे शीत लहर चल रही है सोइये;गर्मी मे बाहर निकलना खतरनाक है नींद ही सहारा है।बसंत मे वासंती हवा चँवर डुला रही है,नींद की गोद मे समा जाइये। निद्रा- बखान बरनि न जाई।सोचिये माड़साब के बोर लेक्चर के सामने आपके दिमाग की ढाल बन कर कौन आई? कवि सम्मेलन मे बोर ,घिसी -पिटी व दोहराई जा रही रचनाओं से आपकी रक्षा कौन करती है?बोरियत भरे क्रिकेट और फिल्मों से भी आपको यही बचाती है। फिल्मी लोरियों से तो संगीत धनाढ्य है।कितना वात्सल्य भरा है,लोरियों मे।”चंदामामा दूर के …..” गीत आज भी बुजुर्गो को याद है ।
राजनीति मे तो नींद के महात्म्य पर ग्रंथ लिखे जा सकते है।संसद के चलते सत्रों मे,विधान सभाओं मे हमारे जनप्रतिनिधियों को सोते हुए हमने टेलिविज़न पर कई बार देखा है।ये चुनाव के पूर्व जनता के बीच आते हैं,वचन भरते हैं और फिर पाँच सालों के लिये सो जाते हैं।उनकी नींद की मजबूरी जनता समझती ही नहीं है;कभी -कभार बहुत हिम्मत जुटा कर चिल्लाने लगती है।भला यह भी कोई बात हुई,आखिर नींद भी तो कोई चीज़ है कि नहीं? अब बात सपनों की करें तो सपनों का अपना अलग ही खाका है।चुनाव के पूर्व और बाद मे भी समय-समय पर दिखाए जाने वाले लोक-लुभावन सपनों को कौन भुला सकता है? और आखिर सपने देखने का जनता को अधिकार भी है।क्यूँ न देेखे सपने?अपने बहुमूल्य मत के बदले वह प्राप्त करती है,सपने।
जो कार्य आप यूं नहीं कर पाते वे सपने मे पूरे हो जाएँ तो हर्ज क्या है?आप के बैंक खाते मे बिना किसी मेहनत के राशि आ जाए।आपका स्वयं का बहुत सुंदर मकान हो।आपके मकान के आगे स्वच्छ ,साफ पक्की सड़क बन जाए,नलों मे समय से साफ, पर्याप्त पानी आ रहा हो ,व्यवस्थित ट्रेफिक हो;गाँव -शहर अपराध मुक्त हो।यातायात के समुचित साधन हों।वाह! क्या बात है। बड़े-बड़े पर्वतों के पार,हरे-भरे इलाकों से सपने ही आपकी भेंट कराते हैं।
ऐसा भी नहीं है कि निंदिया रानी सदा हर एक से प्रसन्न रहती हो।जब किन्हीं कारणों से रूठ जाती है तो लोगों को न जाने क्या क्या खाना पड़ता है। यदि अब भी आप नींद का महत्व नहीं समझ पाए हैं तो फिर आप वही प्राणी हैं जो रात मे जागने के लिए मशहूर है।

— डॉ. अखिलेश शर्मा

डॉ. अखिलेश शर्मा

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