कविता

जहर में डूबे रिश्ते

ये मत कहना कि मजबूरी है,

जीवन में रिश्ते जरूरी है,

तू तू मैं मैं होना,

एक दूसरे से नाराज होना,

ये सब तो इंसानी फितरत है,

पर इसे तोड़कर रिश्ते खो देना,

कभी नहीं कहता कुदरत है,

हजारों सालों से सहते आ गये

सारे जुल्मों सितम,

तब भी संबंधों की मिठास

कभी नहीं हुआ कम,

पर आज विश्वास इस कदर टूटा है,

कि भाई बहन हर रिश्ता छूटा है,

कारण वहीं है कि

हम अपनों को छोड़

पड़ोसियों पर भरोसा करते हैं,

जो सुझाव देने के बजाय

हमारे दिमाग में कूट कूट कर जहर भरते हैं,

क्या देखा है कभी कि

गरल पी संबंध निखरता है?

अरे नहीं साब इससे संबंध बिखरता है,

अपनों को भूल डिवाइसों में व्यस्त हैं,

किताबों को तो भूल गए हैं

और रिश्ते कर रहे ध्वस्त हैं,

मत भूलिये कि जहर जहर है,

जो आपसी सौहार्द्र के लिए कहर है।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554