ग़ज़ल
जिन्दगी बीती कहानी है तो है ।
ढलते सूरज की रवानी है तो है।
जिन्दगी के दरमियां बस,
खून पानी है तो है।
सच मुकम्मल सच रहे,
झूठी बयानी है तो है।
पूजता पत्थर को कैसे,
देवता वो है तो है।
जद में तूफानों के आखिर,
नाव अपनी है तो है।
एक अदना जिन्दगी से,
मौत बेहतर है तो है।
टूटता जो रोज़ भीतर,
दिखता बाहर है तो है।
सच की लंबी इंतजारी,
झूठ तारी है तो है।
वो उड़ेगा आसमां में,
पहरेदारी है तो है।
बांसुरी कान्हा के होंठों,
बेसुध गोकुल है तो है।
— वाई.वेद प्रकाश