कविता

चैतिचांद झूलेलाल 

मन को भाएं , चैती का चांद

नववर्ष  का   होए  शंखनाद ।

जगत-जननी के है। नवरात्र

प्रकृति लाई    बसंत उन्माद ।।

तारों के मध्य में  गोल  चांद

खडा है मानों  शीतल  शांत ।

चकोर भरें  मन  में उल्लास

सौन्दर्य पाने की लेकर आस ।।

झूलेलाल  जन्में    चैतिचांद

धरा  पर  छाया   हर्षोल्लास ।

सारे   तारे  है   इसके   दास

जग को  शीतलता देता चांद ।।

— गोपाल कौशल भोजवाल 

गोपाल कौशल "भोजवाल"

नागदा जिला धार मध्यप्रदेश 99814-67300