चैतिचांद झूलेलाल
मन को भाएं , चैती का चांद
नववर्ष का होए शंखनाद ।
जगत-जननी के है। नवरात्र
प्रकृति लाई बसंत उन्माद ।।
तारों के मध्य में गोल चांद
खडा है मानों शीतल शांत ।
चकोर भरें मन में उल्लास
सौन्दर्य पाने की लेकर आस ।।
झूलेलाल जन्में चैतिचांद
धरा पर छाया हर्षोल्लास ।
सारे तारे है इसके दास
जग को शीतलता देता चांद ।।
— गोपाल कौशल भोजवाल