आओ कुछ पग साथ चलें
जीवन का कोई नहीं ठिकाना, कैसे जीवन साथ चले?
जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥
चन्द पलों को मिलते जग में, फ़िर आगे बढ़ जाते है।
स्वार्थ सबको साथ जोड़ते, झूठे रिश्ते-नाते हैं।
समय के साथ रोते सब यहां, समय मिले तब गाते हैं।
प्राणों से प्रिय कभी बोलते, कभी उन्हें मरवाते हैं।
अविश्वास भी साथ चलेगा, कुछ करते विश्वास चलें।
जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥
कठिनाई कितनी हों? पथ में, राही को चलना होगा।
जीवन में खुशियां हो कितनी? अन्त समय मरना होगा।
कपट जाल है, पग-पग यहां पर, राही फ़िर भी चलना होगा।
प्रेम नाम पर सौदा करते, लुटेरों से लुटना होगा।
एकल भी तो नहीं रह सकते, पकड़ हाथ में हाथ चलें।
जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥
शादी भी धन्धा बन जातीं, मातृत्व बिक जाता है।
शिकार वही जो फ़से जाल में, शिकारी सदैव फ़साता है।
विश्वास बिन जीवन ना चलता, विश्वास ही धोखा खाता है।
मित्र स्वार्थ हित मृत्यु देता, दुश्मन मित्र बन जाता है।
कुछ ही पल का साथ भले हो, डाल गले में हाथ चलें।
जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥
— डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी