गीत/नवगीत

रिश्तों का गुलदस्ता

पल में तोला, पल में माशा, पल में मन बन जाता है।

पल में बोला, पल में खोला, पल में रिश्ता बन जाता है।

परिवर्तन है मूल जगत का, मानव पशु बन जाता है।

स्वारथ यहाँ पर प्रेम कहाता, प्रेमी मौत बन आता है।

आकर्षण होता है विष में, शातिर विश्वास जमाता है।

काले लोग हैं, काले दिल हैं, प्रेम ठगी का नाता है।

विश्वास से ही है धोखा होता, विश्वासघात कहलाता है।

नारी स्वार्थ बस, नारीत्व बेचती, वह धंधा बन जाता है।

कानूनों से खेल खेलते, जीवन खिलवाड़ बन जाता है।

शातिर औरत शिकार खेलती, मर्द शिकार बन जाता है।

झूठे दहेज के केस हैं होते, फर्जी, बलात्कार हो जाता है।

व्यक्ति और परिवाह हैं मिटते, विश्वास ढह जाता है।

विश्वास, प्रेम, निष्ठा से ही, समाज का आधार बनता है।

आस्था और समर्पण से, परिवार का आँगन सजता है।

तेरा-मेरा, अपना-पराया, रिश्तों का बाजा बजता है।

अधिकारों के संघर्ष से, घर का, ताना-बाना विखरता है।

कानूनों से प्रेम न उपजे, सिर्फ अपराध उपजता है।

रिश्तों का गुलदस्ता तो बस, प्रेम रंग से खिलता है।

— डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)