ग़ज़ल
वो मिला आँख हमसे जिगर ले गया
इश्क़ का आज सारा असर ले गया
ढूँढ़ता ही रहा दिल उसे आज तक
ज़िंदगी को तभी जो बशर ले गया
ये न सोचा कभी था हमीं ने सुनो
जो उड़ा नींद वो दोपहर ले गया
सोच गुस्ताख़ियाँ कीं उसी ने तभी
देख तब गाँव को हर ख़बर ले गया
था लगाया उसी ने बगीचा यहाँ
अब उखाड़े सभी वह शजर ले गया
अब खुशी की तलाशी वह लेने लगा
वह मुझे भी इधर से उधर ले गया
चाहतें जो बढ़ीं तो हुआ यह तभी
गाँव की खूबियाँ सब शहर ले गया
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’