लघुकथा – घर का सुख
स्कूल के बगल में आर्मी का ट्रांजिट कैंप होने के कारण आते- जाते फौजी वहां रुकते। घर से आते फौजी ने स्कूल के बरामदे में अपना पिट्ठू व राइफल एक तरफ टिकाते हुए चढ़ाई के कारण चेहरे पर आया पसीना पौंछा और फिर मास्टर रामदास की ओर मुखातिब होते हुए बोला- “मास्टरजी तीन-तीन महीने पहले अर्जी लगाने के बाद जब छुट्टी मिलती है, तो बिना रिजर्वेशन के तीन-तीन दिन का सफर ट्रेन में खड़े खड़े कर देते हैं , फिर भी कोई थकान नहीं होती। परंतु वापसी में रिजर्वेशन के बावजूद स्टेशन पर पहुंचते-पहुंचते शरीर टूटने लगता है ।” उसके चेहरे पर फिर उभर आईं पसीने की बूंदें मानो उसकी अनुभूति की गवाही दे रही थीं ।
— अशोक दर्द