सच्चाई
धरम करम का हो रहा,रोजाना व्यापार ,
सच्चाई कुछ भी नहीं,बस मिथ्या आचार।
धर्म कर्म में लीन हैं ,करते पूजा पाठ ,
सच्चाई में जी रहे ,ले के झूठे ठाट।
विज्ञापन से भर रहे ,अखबारों को रोज ,
खबरें होती चटपटी, सच्चाई तू खोज।
बजा रहा जो मीत जी ,सच्चाई का ढोल .
उसके मुख से सर्वदा ,निकलें झूठे बोल।
— महेंद्र कुमार वर्मा