लघुकथा – कच्चे पपीते
“सुनो जी, ये कच्चे पपीते क्यों ले आये? यहाँ घर में कोई पसंद नहीं करता। इनका मैं क्या करूँ?” पत्नी ने झल्लाते हुए पति से कहा।
“अरे!भाग्यवान इनका सब्जी बना लो या हलवा बना लो।” पति ने कहा।
” तुम्हें तो पपीते की सब्जी बिल्कुल पसंद नहीं है और हलवा बच्चे पसंद नहीं करते। मुझे समझ नहीं आता जब घर में कोई कच्चा पपीता पसंद नहीं करता तो तुम बेवजह इतने सारे कच्चे पपीते क्यों ले आये?” पत्नी गुस्से से बोली।
“सच बात बताऊंगा तो तुम गुस्सा तो नहीं करोगी न? वो क्या है सड़क किनारे एक वृद्धा कच्चे पपीते बेच रही थी और किसी महिला से कह रही थी कि ‘बहन जी, पपीते ले लो। दो दिन से मेरे घर चूल्हा नहीं जला है। कम दाम में ले लो।’ किंतु उसका पपीता किसी ने नहीं लिया। मैंने यह सुना तो मुझे उस पर दया आ गई। मैंने उस वृद्धा से पूछा- माता जी, ये पपीते कितने में दोगी?” तो वो बोली -“बेटा, जो उचित लगे दे दो। भगवान तुम्हारा भला करेगा। क्या करूँ बेटा, असहाय हूँ। घर पर दो-चार पपीते का पेड़ है। वही जीने का सहारा है और मेरे पास कुछ भी नहीं है। पके पपीते कुछ दिन पहले बेचे थे। उससे दो दिन घर में चूल्हा जला पर अब पके पपीते नहीं है तो कच्चे ही तुड़वा कर लाई हूँ ताकि मेरी छोटी सी पोती को भोजन मिल सके। वो भी दो दिन से भूखी है।बहू -बेटे दो साल पहले कोरोना की भेंट चढ़ गए ।तब से जैसे-तैसे गुजारा कर रही हूं।” मैंने उसके सारे पपीते सौ रुपये में खरीद लिए।” पति ने डरते हुए पत्नी से कहा।
यह सुनकर पत्नी ने कहा-“ओह! बेचारी गरीब वृद्धा को फिर दो सौ रुपये दे देना था ताकि वे लोग भरपेट भोजन कर सके।” यह सुनकर पति पत्नी का मुँह देखते रह गया।
— डॉ. शैल चन्द्रा