मुक्तक/दोहा

दोहे

जिसको देखो दिख रहा, आज नशे में चूर ।।

नश्शा वो भी नकचढ़ा, जिसका नाम गुरूर ।।

आत्ममुग्धता में रहे, खोए यूं भरपूर ।।

शनै शनै होते गए, अपनों से ही दूर ।।

रसना जरा संभाल कर, चुनना वर्ण विधान ।।

पहले खुद से तौल कर, उच्चारित हो ज्ञान ।।

हंसी ठिठोली है उचित,  दे बरबस मुस्कान।।

अमिट छाप अपनत्व की, मन को करे प्रदान ।।

शकुनी के पांसे लिए, धूर्त रहे मुस्काय ।।

जुगत भिडाएं दांव की, मेरा नंबर आय ।।

— समीर द्विवेदी नितान्त

समीर द्विवेदी नितान्त

कन्नौज, उत्तर प्रदेश