व्यंग्य – क्या आपने उँगली की?
उँगली करना अच्छी बात नहीं है। परिवार से लेकर विद्यालय तक और सेवा से लेकर सामाजिक जीवन तक यही सिखाया जाता है कि किसी को उँगली ना करो। पर लोग हैं कि आदत से बाज नहीं आते। सास बहू को उँगली करती है, बहू सास को। बड़ा अधिकारी छोटे को करता है लेकिन छोटा वाला उसको उँगली करे तो साहब के नाक पर बैठी मक्खी अपने पैर गड़ाकर उसे तिलमिला देती है। बड़े-बूढ़ों को उँगली करना और कुछ रिश्ते-नातों में उँगली करना इस देश का सांस्कृतिक पहलू है। इसमें लोग लोग उँगली करने वाले को अंगूठा दिखा देते हैं। किंतु किसी को उँगली करना हमारे शिष्ट समाज में अनुचित माना जाता है।
इस देश में जब से मोबाइल का अवतरण हुआ है, उँगली करने की संस्कृति दिन दुनी रात चौगुनी फैली है। दुधमुँहे बच्चे से लेकर कब्र मे पैर लटकाए बैठे बाबा जी भी उँगली करने में लगे रहते हैं। बात तब बिगड़ती है जब ‘मोबाइल में’ उँगली करते-करते ‘मोबाइल से” से उँगली करना शुरू कर देते हैं।
उँगली करना बुरी बात है लेकिन उँगली दिखाना तो गाली बकने के बराबर का अपराध है। वैसे उँगली उठाना भी धार्मिक ग्रंथों में अशोभनीय सिद्ध किया गया है क्योंकि बाकी की शेष तीन उँगलियाँ प्रदर्शन कर्ता को ही तिगुना अपराधी प्रमाणित कर देती हैं। कबीर बाबा तो चेतावनी भी देते हैं – “दोष पराये देख कर चला हँसत, अपने याद ना आवहिं जिनको आदि न अंत।” पर क्या करें अपने पर और अपनों पर न कोई उँगली उठाता है ना कोई दिखाता है।
हमारे देश में यदि सब ठीक चलता रहता है तो सरकार पाँच साल में एक बार उँगली करने का अवसर देती है, कि आइए हमें उँगली कीजिए। मोबाइल प्रेमी आलसी जीव मोबाइल में तो दिनभर उँगली करते हैं लेकिन वोटिंग मशीन में उँगली करने से परहेज करते हैं और फिर उँगली उठाते रहते हैं कि सरकार अन्यायी-अत्याचारी है। कुछ मोबाइल प्रेमी अपनी उँगली का मुँह काला करवा कर प्रचार भी करते हैं। ऐसे लोगों का इस तरह उँगली दिखाना उन्हें देशभक्तों की श्रेणी में खड़ा कर देता है।
इस समय देश में उँगली करने और उँगली दिखाने का माहौल चल रहा है। क्या आपने उँगली की? यदि अवसर चूक गये हो तो अब उँगली मत उठाना और यदि अवसर आने वाला है तो उँगली करने से मत चूकना। याद रखिए सरकारों का घी टेढ़ी उँगली से नहीं बस उँगली करने से निकल जाता है- जहाँ काम आवै सुओ, कहाँ करे तलवार? आइए सब मिलकर उँगली करें।
— शरद सुनेरी