गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सून यही तस्वीर ही सबको दिखा रक्खी है
पर मुहब्बत ही ज़माने से छुपा रक्खी है

मयक़दा – सा हुस्न तेरा देखते ही बनता
आज तक सूरत वही दिल में बसा रक्खी है

जो उड़ी ख़ुशबू ज़माने तक अभी पहुँची है
वो महक साँसों तलक मैंने दबा रक्खी है

अब दुआएँ जो मिलीं हमको सुहानी लगतीं
कर्म करते देख सीने से लगा रक्खी हैं

जो कहा तुमने गँवाना मत इन्हें सुन लो
आज महफ़िल में शमा मैंने जला रक्खी है

रोज़ पढ़ता हूँ सुकूं पाता हमेशा सुन ले
तेरी चिट्ठी जो किताबों में छुपा रक्खी है

आरज़ू मेरी यही इक ताजमहल बना लूँ
आज तक ख़्वाहिश यही दिल मे बचा रक्खी है

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’