थैलेसीमिया- तैयार बैठा बलि लेने के लिये- देवदूत इनसे लड़े
उफ्फ़ तड़प रही थी , कराह रही थी, रो रही थी, सॉंसें भी अटक रही थी उसकी ना जाने कब मौत उसे अपनी आगोश में ले लेता कुछ नहीं पता था उसकी उस परिस्थिति को देखकर परिवार जन रो रहे थे मॉं भगवान के चरणों में गुहार लगाने लगी और भगवान से कह रही रो-रो कर भगवान भेज अपना कोई जल्दी देवदूत जो मेरी बच्ची के प्राणों को हरने से रोक ले । जल्दी कर भगवन कहीं देर ना हो जाए मेरी कोख ना सूनी होने देना तुझे मेरा वास्ता भगवान भेज कोई देवदूत और उसको रोता बिलखता देख उसके आस-पास मौजूद परिजन व अन्य अपरिचित लोग भी बस उस मॉं की व्यथा देख बिलख रहे हर कोई उस मॉं की करूणा भरी चीख के आगे विवश नज़र आ रहा था। पिता रो-रो कर लोगों को फोन पर फोन लगा रहे हर एक परिचित को या उन सेवा धारियों को जो ब्लड कार्डिनेटर हैं हर कोई उनके दर्द से वाकीफ हो लग गया पुरजोर कोशिश में आखिर एक बच्ची की जिंदगी का जो सवाल था। सौ फोन के बाद लगभग एक देवदूत मिला जिसे जल्द से जल्द उस अस्पताल ले जाया जा रहा था जिस अस्पताल के बैड पर वो बच्ची अंतिम सॉंसों की बस प्रतिक्षा ही कर रही थी जैसे , जैसे ही देवदूत अस्पताल पहुंचा जल्द ही अस्पताल की नर्सों के बीच आपा-धापी शुरू हो गयी बच्ची को देवदूत का रक्त उसके शरीर में प्रवेश करवाने की और पॉंच मिनट की तैयारी के बाद बच्ची को ब्लड दिया गया मात्र पंद्रह मिनट में सब कुछ हुआ अब बच्ची कि स्थिति पहले से बहुत ही बेहतर थी। एक दिन के आराम के बाद बच्ची को अस्पताल से छुट्टी मिल गयी । मॉं अपनी बच्ची को सुरक्षित देख भगवान का शुक्रिया कर रही थी उस देवदूत के पॉंव छू कर धन्यवाद कर आंसूं बहा रही थी और अगले महीने के लिये अभी से चिंता में डूब गयी थी पर अपनी बच्ची को सीने से लगा उसे तसल्ली जैसे दे रही थी, बच्ची भी अपनी मॉं के आंचल के सीने से लिपट खुद को बहुत ही महफूज़ समझ रही थी।
ये कोई साधारण सी कहानी नहीं है। ये हर एक उस बच्चे कि कहानी है जो बहुत ही दुर्लभ बिमारी से जूंझ रहे हैं जो हर पल किसी न किसी को अपने मौत के साए में लेने को तैयार बैठी है उस निर्दई बीमारी का नाम है *थैलेसिमिया* जी हॉं ये वही बीमारी है जो अब तो अपने पैर पसार रही है मुझे कारण नहीं पता कि ये बीमारी क्यों और किसको होती है? परंतु इसका इलाज बहुत ही महंगाई है जो हर किसी के आर्थिक बजट में संभव नहीं है । चलो मान लो कोई इस इलाज का खर्च वहन भी कर ले तो भी जिंदगी का भरोसा नहीं जिसमें आपरेशन के समय ही बहुत से बच्चों की मौत हो जाती है। इस बीमारी में होने वाले आपरेशन को कहते हैं *बोन मैरो ट्रांसप्लांट* जी हॉं सच यही इसका एकमात्र उपचार है। इस बिमारी से ग्रसित बच्चों में खून नहीं बन पाता है ऐसे बच्चे उसी ब्लड ग्रुप के अन्य इंसानों के ब्लड पर निर्भर रहते हैं। हर माह शरीर में रक्त लगता है और बढ़ती उम्र के साथ-साथ रक्त की मात्रा भी अधिक लगने लगती है। यदि ऐसे बच्चों को रक्त नहीं मिल पाया हर माह तो उनकी मौत स्वाभाविक हो जाती है। बहुत ही एसी सम्मानित सेवा संस्था हैं जो एसे बच्चों के लिए स्वयं मिल एकजूट होकर हर माह रक्तदान करने को सदस्य स्वयं सामने से चलकर आते हैं। बहुत से लोग तो ऐसे बच्चों के नाम ही अपना नाम लिखवा देते की हर तीन माह में फलाने बच्चे के लिए सिर्फ मेरा रक्त दान हो। वाकई किसी को नवजीवन दे कर आनन्द जो रक्त दान वीर को आता है उसे बड़ा कोई सौभाग्य उन्हें आनंदित नहीं कर पाता है। तभी तो पहले भी एक आलेख के जरिए लिख बताया था कि धरा पर ही कुछ देवदूत रहते हैं जो एक फोन काल पर अनजान के लिए ठीक भगवान की तरह बिना भेदभाव किये हुए पहुंच जाते सहायता को। इन्हीं देवदूतों का दूसरा चलन में नाम है ब्लड कार्डिनेटर। तो इंतजार किस बात का आप भी बने धरा पर ही रह उस ईश्वर के भेजे साक्षात देवदूत जो हर वक्त जरूरत मंद कि सेवा में तत्पर रहता है किसी को नवजीवन दे उस काल से लड़ने के लिये।
— वीना आडवाणी तन्वी