ईवीएम पर आलाप-विलाप
चुनाव से पहले और चुनाव के बाद हजारों उठा पटक,लटके झटके और भांति-भांति के बोल बच्चन सुनने के बाद भी यदि कोई चीज याद रह जाती है।तो वह ईवीएम ही है । यदि कोई रोना रह जाता है । तो वह ईवीएम ही है । ईवीएम को तुलसी की माला बना दिया गया है। पक्ष विपक्ष दोनों उसके नाम की माला जपता रहता है।
हारने और जीतने वाला दोनों कैंडिडेट तो चुनाव तक ही लाइमलाइट में रहता हैं। लेकिन एक ईवीएम ही है। महीना दिन पहले से ही हाईलाइट हो जाता है। और चुनाव के महीना दिन बाद भी खूब सुर्खी में बना रहता है। हर कोई सोचता होगा नाम मिले तो ईवीएम जैसा मिले। बदनामी भी अपरंपार और नेकनामी भी अपरम्पार …हर ईवीएम के किस्मत में है। कोई माला जपे कुछ पार उतरने के लिए भी और डूबने के बाद इज्जत बचाने के लिए भी। ईवीएम .. ईवीएम ना हो कर नेताओं के दरवाजे का पर्दा हो चुकी है । जो उनकी इज्जत ढाक छुपा कर रखती है। वरना अब तक कितने माननीय की इज्जत तारतार और चिंदी चिंदी रोड पर पड़ी हुई दिखाई देती।और उनके विरोधी उनके सामने उनके झंडे बनाकर उन्हें चिढ़ाते रहते। सब कुछ ईवीएम के माथे मढ़कर अपनी लाज को बचा ले जाते हैं।
चुनाव से निपटने के बाद स्ट्रांग रूम में सुरक्षित रखी हुई बहुत सारी ईवीएम एक दूसरे से फुर्सत से बतिया रही थी। कोई छेड़ रही थी कोई शर्मा रही थी। सब अपने अपने क्षेत्र के माननीय के कच्चे चिट्ठे एक दूसरे के सामने खोल रही थी। ईवीएम आश्चर्य में पड़ रही थी ।अरे माननीय तो इतनी बड़ी बड़ी बातें किए थे और हकीकत में उनकी औकात दो पैसे की है। एकदम उत्सव जैसा माहौल था।
एक ने पूछा -“बहन.. यह बताओ तुम्हारे यहां के मतदाता कैसे थे? मतदान कैसा रहा? मैं तो जहां गई थी वहां के मतदाता घोर काहिल थे.. इतना जरूरी काम.. उसको भी करने में उन लोगों की कोई दिलचस्पी नहीं थी मात्र पचास फ़ीसदी ही मतदान करने के लिए घर से निकले और बाकी सब लगे रहे सोशल मीडिया पर चुनाव पर ज्ञान देने में”।
दूसरी ईवीएम बोली-” हां बहन.. मेरे यहां के मतदाता तो और भी निकम्मे थे ..मात्र चालीस फीसदी ही घर से निकल पाए.. वोट देने के लिए.. जो सजग थे वह तो वोट के लिए निकले ..लेकिन उन निकम्मों का क्या किया जाए ?जिनके लिए चुनाव कोई मायने ही नहीं रखता और लेकिन उन सबों की अरुचि के कारण अगर गलत कैंडिडेट जीतता है और कुछ उनके क्षेत्र में गलत होता है तब छाती पीट कर जरूर रोते हैं”।
सारी इबीएम में एक दूसरे से बतियाने और एक दूसरे क्षेत्र के क्षेत्र का हाल-चाल पूछने में व्यस्त थी। आखिर क्या करें मिलना भी तो ज्यादा ज्यादा दिन पर होता है । वहीं पर दूर एक कोने में एक ईवीएम घुटनों में सर डालें सिसकिया भर रही थी। उसके रोने से सारी सकपका गई ।और सब ने एक स्वर में पूछा –“क्या हुआ बहन तुम क्यों रो रही हो? मात्र चुनाव के समय ही तो हम लोग बाहर निकलते हैं.. एक दूसरे से मिलते जुलते हैं.. एक दूसरे से दुख सुख सांझा करते हैं ..जनता को उनका मनचाहा उम्मीदवार जिताने में साधन बनते हैं और ऐसे शुभ घड़ी में तुम क्यों रो रही हो?”।
रो रही ईवीएम ने एक बार सिर उठाकर सबको देखा और रोते हुए ही बोली-” बहनों क्या तुम लोगों को अंदाजा है कि चुनावी रिजल्ट के बाद क्या होगा.. नहीं तुम लोगों को कोई अंदाजा नहीं है ..इसीलिए इतनी निश्चित और सहज और खुश होकर बात कर रही हो.. लेकिन मैं चुनावी रिजल्ट के बाद की स्थिति को सोच कर रो रही हुं.. चुनाव के बाद जो जीतेगा वह हमारी जय जयकार करेगा और जो हार जाएगा.. वह अपने कर्मों का ठीकरा हमारे सर पर तोड़कर हमारी सुचिता पर उंगलियां उठाऐगा.. जबकि हम लोग थोड़े ना कहने जाते हैं कि नहीं आप अलाना और फलाना उम्मीदवार को चुनिए.. हम लोग तो इतने असहाय हैं की अपने आप तो अपने में कुछ बदलाव भी नहीं कर पाते हैं.. लेकिन फिर भी सारी गलियां हम लोगों के ही हिस्से में आती है”।
सारी ईवीएम के बीच में से एक बुढ़ी और समझदार ईवीएम निकल कर बाहर आई और रोती हुई ईवीएम के आंसू पोंछ कर बोली– बेटी रो मत.. मैं तो कितने साल से इन घाघ,दलबदलु नेताओं की बातें सुनते आ रही हूं.. जब जीतते हैं तो खुश होते हैं ..और हारते हैं तो गाली देते हैं.. तुम उन सजग मतदाताओं के बारे में सोचो ना की इन घाघ नेताओं के बारे में सोच कर अपने को दुखी करो”।
रोने वाली ईवीएम लगता था। अपनी स्थिति के बारे में सही-सही समझ तो गई है। लेकिन फिर भी उसका दिल स्वीकार नहीं कर रहा है।अपने देश के जनता के तरह ही।
— रेखा शाह आरबी