लघुकथा

सबसे खुशकिस्मत इंसान

कितने सुख थे उस अस्पताल में, इतनी बीमार होते हुए भी मीनू खुश-सी दिखती थी! जब मन चाहे, अपनी मर्जी का खाना-पीना, अअपताल के अंदर-बाहर सैर कराने के लिए सोशल वर्कर, जो गेम्स चाहिएं, तुरंत हाजिर. नए-नए गेम्स के लिए कम्प्यूटर और सिखाने वाला प्रशिक्षक, अपने पेशे में निपुण और मृदुभाषी डॉक्टर, स्नेहिल नर्सें, ब्यूटीशियन से जो मर्जी सेवा ले लो, चित्रकला करनी है, कागज-पैसिल-रंग हाजिर, बुनाई करनी है मनपसंद रंग की ऊन-सलाइयां तैयार! सब कुछ था, बस मीनू के मन को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए जीने की चाहत खत्म हो गई थी.
“आप जिस भी इष्टदेव को मानती हैं, उसको हमसफर बना लीजिए, जीवन का सफर आसान हो जाएगा.” काउंसिलर ने जोर देकर सलाह दी.
मीनू ने भगवान राम को हमसफर बना लिया, लाभ होना शुरु हुआ, अब मीनू खुद को सबसे खुशकिस्मत इंसान मानती है.
— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244