कविता

रिश्ते निभाना जानता हूँ

मैं तो खुद ही जानता हूँकि मैं कुछ भी नहीं जानता हूँपर ऐसा भी नहीं है कि मुझे कुछ भी नहीं आता,अब आपको भले ही नहीं लगतापर रिश्तों को निभाना मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ।हाँ! यह और बात हैकि छोटे बड़े अपने पराये का भेद नहीं जानतारिश्तों का वजन दौलत के तराजू में नहीं तौलताअमीर गरीब का विश्लेषण करने का वक्त ही नहीं मिलता है मुझेस्वार्थ का कीड़ा आश्रय नहीं पाता मुझमें,रिश्तों में लाभ हानि का व्यापार मैं नहीं करतालेकिन पीठ पीछे वार भी जब तब मैं हूँ सहतामगर इसे जीवन का हिस्सा मानता हूँ।कुछ भी हो अपने पथ से नहीं डिगतास्वविवेक से निरंतर गतिमान रहता हूँरिश्ते और रिश्तों का मतलब क्या है?उनकी अहमियत और परिभाषा क्या है?बहुत अच्छे से जानता हूँ,माना कि रिश्ता निभाने में बहुत कुछ सहना भी पड़ता है,मन के आवेग को समेटना भी पड़ता है,मर मरकर जीना और जी जीकर मरना पड़ता हैअपनी खुशियों, ख्वाहिशों को रौंदना पड़ता है।लेकिन यह भी जानता हूँ मैंकि रिश्तों की बदौलत जो कुछ भी मिलता हैउसे धन दौलत से खरीदा नहीं जा सकता हैअकेलेपन का पता ही नहीं चलता,अपने आंसू खुद पोंछना नहीं भी पड़ता ।हर ओर जब निराशा के बादल छा जाते हैंतब इन्हीं रिश्तों से आशाओं का विश्वास मिलता है,अंधेरे में उजालों का नव मार्ग मिलता हैआखिर रिश्तों का यही तो मतलब होता है।बस! मैं तो इतना ही मानता हूँखोने से ज्यादा बिन मांगे पाता हूँ,शायद इसीलिए रिश्तों को मानता और रिश्तों की ताकत भी जानता हूँ,अपना सम्मान स्वाभिमान नहीं खोता,नि: संकोच रिश्तों का आइना भी दिखा देता हूँ।रिश्तों का मान सम्मान करता हूँरिश्तों पर अभिमान करता हूँऔर इन्हीं रिश्तों के दम पर मैं किसी से भी नहीं डरता हूँक्योंकि मैं रिश्तों को ही जीता हूँ।हर मुश्किल में मुस्कुराने को विवश हो जाता हूँ,शायद इसीलिए कि मैं और कुछ भले न जानूंपर रिश्ते निभाना बहुत अच्छे से जानता हूँ।रिश्तों की गहराई में अठखेलियां करना जानता हूँइसीलिए रिश्तों में उलझकर भी हर वक्त मुस्कराता हूँयकीनन रिश्ते निभाने का हुनर आता है मुझेऔर मैं रिश्ते निभाना बहुत अच्छे से जानता हूँ।

*सुधीर श्रीवास्तव

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