ग़ज़ल
कल की चिंता आज नहीं,
अंत है ये आग़ाज़ नहीं।
फ़ितरत है शीशे जैसी,
अपने दिल में राज़ नहीं।
माँ, बाबा की सेवा से,
और बड़ा कुछ काज नहीं।
झूठों का है शोर बहुत,
सच की अब आवाज़ नहीं।
नकली सब उडने वाले,
पंखों में परवाज़ नहीं।
‘जय’ तेरी ये ग़ज़लें अब,
परिचय की मोहताज नहीं।
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’