मुक्तक – वक्त
वक्त ने नहीं कद्र किया वक्त के बादशाह का,
जिल्लत सह न दिया जवाब भद्रों के गुनाह का,
वक्त देखो बदला कैसे आज पगलाये हर लोग
सिर बैठा, सब घूमते लिए उनकी परवाह का।
— राजेन्द्र लाहिरी
वक्त ने नहीं कद्र किया वक्त के बादशाह का,
जिल्लत सह न दिया जवाब भद्रों के गुनाह का,
वक्त देखो बदला कैसे आज पगलाये हर लोग
सिर बैठा, सब घूमते लिए उनकी परवाह का।
— राजेन्द्र लाहिरी