कविता

अनुराग

विनय, विवेक जैसे माणिक मोती,

शुभ भावना जगमग जीवन ज्योति,

मिश्री-सी मीठी बोली, रेशम बंधन,

प्रेम-अनुराग, दुलार, मृदुल स्पंदन।।

सेवा-सुश्रुषा,साधना, हो सत्कर्म,

जीव दया, करुणा मानव धर्म,

हो संयम, सहयोग, सहृदयता,

न दंभ, दर्प, अहंकार, दानवता।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८