लघुकथा

पहली मुलाकात

आभासी संवाद का सिलसिला पहली मुलाकात तक आ पहुंचा।जब रितेश और करुणा पहली बार मिले थे। यूं तो दोनों के बीच दूर दूर तक कोई रिश्ता न था। बस एक आत्मीय भावना के वशीभूत जब दोनों मिले भी तो खुली सड़क पर एक विद्यालय के सामने। पहली बार देखते ही दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया, जैसे कब से एक दूसरे को जानते हों।

   करुणा ने आगे बढ़कर रितेश के पैर छुए और फिर उसे अपने साथ अपने घर ले गयी। जहां उसके परिवार ने खुले मन से रितेश का स्वागत किया।

   वैसे तो रितेश के लिए यह अप्रत्याशित नहीं था क्योंकि करुणा के अलावा उसके परिवार के सदस्यों से भी उसकी बातचीत होती रही। फिर भी इतनी आत्मीयता की उसे उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी। 

    करुणा ने अपने पति सुदेश को फोन पर रितेश के आने की सूचना दी, तब उसने रितेश से सीधे बात कर मजाकिया लहजे में कहा – साले साहब! अपने जीजा से मिलकर ही जाइएगा।

     रितेश ने हामी भर दी और शाम को जब सुदेश घर आया, तो माहौल और खुशनुमा हो गया।

   रितेश ने जब सुदेश से वापस जाने की बात की, तब सुदेश ने कहा अरे यार! कुछ तो शर्म करो, पहली बार बहन के घर आये हो और इतनी जल्दी वापस जाने की बात करने लगे। क्या करुणा ने सिर्फ मिलने के लिए ही बुलाया था? 

   अरे नहीं! ऐसी बात नहीं है, आप सबसे मिलने की इच्छा थी। ईश्वर कृपा से वो पूरी हो गई। रितेश ने धीरे से कहा

    तब सुदेश ने अधिकार से कहा – इच्छा अनिच्छा मुझे नहीं पता, बस आज आप नहीं जा रहे हैं बस।माना कि आप उम्र में थोड़ा बड़े होंगे, लेकिन करुणा को बहन कहते हैं तो रिश्ते में तो मैं ही बड़ा हो गया।

    फिर सुदेश ने करुणा से कहा तुम अपने भाई को जाने देना चाहो तो जाने दो, मगर मैं अपने साले को तो नहीं जाने दूंगा। वैसे भी माँ का तो तुम्हें पता  ही है। पहले तो माँ इजाजत नहीं देंगी और ज्यादा कुछ कहेंगे तो खोज खबर भी अच्छे से लेंगी।

   सुदेश की बात सुनकर रितेश हंस पड़ा और जाने का इरादा त्याग दिया। 

*सुधीर श्रीवास्तव

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