कविता

कबीर दास

अंतर है हमरी कथनी करनी में 
देते दुहाई कबीर की 
आ जाओ फिर एक बार 
करते उससे निवेदन हैं 
फिर से दे जाओ सीख 
पर क्या सीखें  उनकी कलमबद्ध नहीं 
क्यों नहीं पढ़ 
उनसे लेते सीख 
पढ़ते जरूर हम उनको हैं 
नहीं उतारते पर आचरण में 
सही बताना 
छुआछूत मिटाने को 
क्या खाया खाना कभी 
हमनें 
किसी वाल्मीक के घर का 
घर में भी खाना बनाने वाले को 
रखते हैं जाति पूछकर उसकी 
कबीर फिर क्या कर सकता 
जब न मानो उसकी सीख को

— ब्रजेश गुप्ता

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020

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