परीक्षा
रोज किसी-न-किसी बच्चे की आत्महत्या करना या मानसिक तनाव से पीड़ित होने का समाचार पढ़ना बेटे के फेल होने पर सुमेधा को भी त्रस्त कर रहा था.
“अभिभावकों का कर्तव्य तो बस उनका मार्गदर्शन कर उन्हें उड़ान भरने के लिए तैयार करना है, उन पर अपनी मर्जी थोपकर उनके पर कतरना नहीं! हमने ही तो उसे उसकी मनपसंद कॉमर्स न लेने देकर जबरदस्ती इंजीनियरिंग में दाखिल करवा दिया था!” उसका पश्चाताप मुखर हो गया था.
“बेटा सुमित पढ़ाई की परीक्षा में फेल हो गया तो क्या हुआ, उसे जीवन की परीक्षा के लिए भी तो तैयार करना होगा!” उसके अंदर की मां ने समझाया.
वह दूसरे कमरे में रोते हुए सुमित को गले लगाकर उसे अपनी मनपसंद स्ट्रीम में जाकर अगले प्रयास के लिए उद्यत हुई.
— लीला तिवानी