स्टेशनरी
चुभो देती हो यकायक
जब पन्ने की भाँति बिखरता हूँ,
स्टेपलर बन जाती हो और
एकत्र कर लेती हो बाहों में।
फिर से पिनअप करके मुझे
जीवन की फाइल को कैद कर लेती हो।
कभी जब उड़ने लगता हूँ तो
जीवन रूपी पन्ने को खींचकर
पेपर वेट बन जाती हो तुम।
हर हाल में बिखरने नहीं देती मुझे
और मेरे इस फाइल पर
नाम खुद का दर्ज कर दिया।
पन्ने के उधड़े चिथड़े भाग को
समेट सहेज फेविकोल से
चिपका कर जान डाल देती हो।
स्टेशनरी की एक चलती फिरती हो दुकान
और तुम्हें और कुछ नहीं चाहिए
चाहिए ये दिल जो रहेगा सदा तेरा मकान।
— सविता सिंह मीरा