लघुकथा

बच्चों की ख्वाहिश

श्रेयस के जन्म के साथ ही गीता ने दुनिया छोड़ दी। रमण की तोक्षदुनिया उजड़ गई। नवजात शिशु की परवरिश चुनौती बन कर खड़ी हो गई। छोटे भाई करण की पत्नी सावित्री ने श्रेयस को संभाल लिया।अस्पताल से घर आने के बाद सावित्री ने करण से सलाह मशविरा करके एक दिन रमण से कहा- भाई जी! मेरा विचार है कि आपको दूसरी शादी के बारे में सोचना चाहिए।अपनी जगह तुम्हारा विचार ठीक है, लेकिन अपने बच्चे की खातिर मैं जोखिम नहीं ले सकता – रमण ने गंभीरता से उत्तर दियाइसमें जोखिम कैसा? श्रेयस की पूरी जिम्मेदारी दोनों की है। लेकिन आपकी जिम्मेदारी हम चाहकर भी नहीं ले सकते। जीवन में पति पत्नी की कमी कोई नहीं पूरी सकता। बढ़ती उम्र के साथ पति पत्नी एक दूसरे का जैसा सहारा होते हैं, वैसा सहारा कोई दे भी नहीं सकता। आप हमारे बड़े भी हैं, और चाहकर भी अपने मन की हर बात हमसे नहीं कह सकते, हम दोनों आपका ख्याल तो रख सकते हैं, लेकिन आपकी पीड़ा पर भावानात्मक लेप भी लगा सकते हैं। लेकिन आपकी आत्मिक पीड़ा पर मरहम लगाने लायक हम हो भी नहीं सकते। अभी आपकी उम्र भी कितनी है? जीवन साथी के कमी भावनाओं से पूरी नहीं हो सकती! भाई जी।सावित्री ठीक कह रही है भैया। हमने आपको पिता की जगह पाया है। भाभी ने जब से घर में कदम रखा, माँ की कमी महसूस ही नहीं हुई। उनके जाने का दुख हमें भी है। लेकिन मैं समझता हूं कि भाभी की आत्मा की शान्ति के लिए यही बेहतर है। करण ने अपना विचार व्यक्त किया।मैं तुम दोनों की भावनाओं को समझता हूँ, यदि तुम दोनों को यही ठीक लगता है, तो जैसा तुम दोनों चाहोगे, मैं चुपचाप यह सोचकर तैयार हो जाऊंगा कि ये मेरे बच्चों की ख्वाहिश है। बस….। बस ! भाई जी, आप बिल्कुल चिंता मत करिए। आपके ये बच्चे हमेशा आपको खुश देखना चाहते हैं। अब तो श्रेयस भी हम सबके साथ है।रमण ने सावित्री और करण के आगे हथियार डाल दिये।

*सुधीर श्रीवास्तव

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