कविता

बन्द करो जंगल की कटाई

बरगद पीपल ने एक सभा बुलाई
अपनी वंशज की व्याथी सुनाई
वन दुश्मन के खिलाफ छेड़ा अभियान
तब लौटेगा जंगल का नया विहान

जन जीवन का प्राण वायु का हम दाता
बदले में कब कुछ हम मानव से पाता
फ़िर भी जंगल हो रहे हैं जग में गुमनाम
परिणाम भुगतोगे रे विश्व तुम अनजान

सूरज की तपिश से तुम्हें मैं ही बचाता
बदरी रानी को धरा पर मैं ही बुला लाता
हमारी वशंज जहाँ पर नहीं हैं जिन्दा आज
पृथ्वी की वो भाग पहना है मरूभूमि ताज

हमारी पत्तियाँ तेरे पशु धन का है चारा
मर मिट कर हम तब भी तेरा हैं सहारा
चौंकी पलंग बन गोद में सब को सुलाते
दरवाजे पर संतरी बन तुमको बचाते

जीवन _मृत्यु परंत तेरे सेवा में हम हैं रत
तेरे घर की हम सदैव हैं एक जरूरत
फिर भी तुम हमको कैसे ना पहचाना
स्वार्थ पाकर भी देते हो हमें अब ताना

सड़ गल पत्ते जब तेरे खेतों में हम जाते
खेतों की उर्वरा शक्ति हम हीं हैं बढ़ाते
मिट्टी की कटाव का हम हैं तेरे प्रहरी
मत काट जंगल वन है तेरे सजग संतरी

प्रदुषण से जब जग हो जायेगा संहार
चिराग ढुँढ़ने निकलोगे हमें हम हैं बहार
जंगल मत काटो रे प्रकृति के कसाई
ढुँढ़ लो जग में कर अन्य काम व कमाई

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088

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