कविता

भूला संस्कार

मानव भूल गया संस्कार
मतलब की लगती दरबार
कोई किसी का ना है यार
स्वार्थ के साथी हैं बस चार

झुठे रिश्ते की सजी बाजार
बेईमानों के दोस्त हजार
बेईमानी की हो रही व्यापार
मौन बैठी है क्यूँ सरकार

मानवता है जहाँ लाचार
दुष्ट पापी से भरा संसार
ईष्या द्वेष की खेती हर बार
मानवता हो गई शर्मसार

नाते रिश्ते की झुठी घर बार
इंसानियत की टुटती दीवार
भाई भाई में खींचती तलवार
रीति रीवाज भूला संसार

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088