कविता

दलाल गाथा

तेरे होने से रहता है समाज को मलाल,
दैदीप्यमान सूर्य सा तू चमकता दलाल,
खुद में तू बड़ा ही मलंग है,
पर चंदन में लिपटा भुजंग है,
जिंदगी में जद्दोजहद बहुत ज्यादा करने है,
तलवे चाट कितनों के पांव सर पे धरने है,
टूटा हुआ धागा तेरा बिन लक्ष्य का पतंग है,
मेहनतकश लोगों के लिए जिंदगी एक जंग है,
राह तेरा रोक पाये किसमें कितना है मजाल,
दैदीप्यमान सूर्य सा तू चमकता दलाल,
न घर न बाहर किसी को नहीं छोड़ा,
आस लगाए लोगों का दिल है तोड़ा,
है इंतजार उस दिन का
पड़े कुदरत का तुझपे कोड़ा,
असत्य बोल अपनों को अंधेरे में है छोड़ा,
उगते हुए तारे को है रोकने पर सवाल,
दैदीप्यमान सूर्य सा तू चमकता दलाल,
एक दिन जरूर तुझे समय ही सतायेगा,
तेरा आका तुझको मंझधार छोड़ जाएगा,
जब तू मर जायेगा,
पूरा बिखर जाएगा,
औलादें होंगे खुश और बीबी होगी निहाल,
जिंदा में दलाल व मर के भी होगा दलाल,
तेरे जीवन गाथा का सुनाऊं क्या क्या हाल,
दलाल,दलाल, हे दलाल वो दलाल।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554