गीत/नवगीत

ग़ुस्सा आया

हिन्दू सब कुछ सहता रहता, तो अच्छा है,
हिन्दू ने प्रतिरोध किया तो ग़ुस्सा आया।
मची खलबली धर्मनिरपेक्ष कट्टरपंथियों में,
सोया हिन्दू जाग रहा है, तो ग़ुस्सा आया।
धर्मभीरू मानवतावादी, जो सोया रहता था,
अन्याय का प्रतिकार किया तो ग़ुस्सा आया।
कब तक मौन रह, चुप चुप सहता रहता,
हुआ मौन प्रतिरोध मुखर, तो ग़ुस्सा आया।
शास्त्रों ने बतलाया, शस्त्र शास्त्र का संगम,
आत्म रक्षा मे शस्त्र उठाया तो ग़ुस्सा आया।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम, सदा धनुष संग रखते,
धर्म मार्ग के अनुगामी हम, तो ग़ुस्सा आया।
कृष्ण ने शिशुपाल को, सौ अपराध की माफ़ी,
शिशुपाल का वध हुआ, तो ग़ुस्सा आया।
कब तक सहन करें पापी को, सहन नहीं होता,
प्रतिक्रिया में अभी ज़रा उठे, तो ग़ुस्सा आया।
जन्म लिया यदि धरा पर, मरना निश्चित है,
चले कफ़न बाँध सर पर, तो ग़ुस्सा आया।
नहीं सहेंगे राष्ट्र विरोधी आक्रांता को भारत में,
बहुत निभाया भाईचारा, अब हमको ग़ुस्सा आया।
क्रिया की प्रतिक्रिया होती, यह शाश्वत सत्य,
काल बनेगा महाकाल, माँ काली को ग़ुस्सा आया।
धर्म और मानवता की हित, हिंसा उचित बतायी,
कुरुक्षेत्र में अभिमन्यु वध, कान्हा को ग़ुस्सा आया।

— डॉ. अ. कीर्तिवर्द्धन