टूट कर ही निखरे हम
संजोए अपने सपनों कि सेज को मैंने बिखरते देखा है
हाथ आई कलम मेरे, जिसे मैंने नित निखरते देखा है
हम अपनी दर्द भरी जिंदगी के पन्ने खोलते लिख कर
हम कुछ बोले नहीं, हमनें तो शब्दों को ही बोलते देखा हैं
काश और आस लगाए, जिंदगी गुजार दी अब तक
काश और आस के जगाए दीप को हमने बुझते देखा है
ग़म भरी तन्हा रातें कलम संग काटी हैं मैंने अब तक
अपने हक को दूजे संग रह कर ही खुश होते देखा है
देख मेरे बहते आंसूओं को हंसते थे मिल वो ज़ालिम
आह भरी चित्कार लिख अपनी , खुद को पढ़ते देखा है
दिल उनका मानसिक प्रताड़ना दे भी न भरता जब
मुझ पर क्या बीते ये नज़र अंदाज़ उनको करते देखा है
देखो कितना तोड़ा है तुमने पराई संग मिल वीना को
वीना कि अपनी पहचान, इस पहचान को गढ़ते देखा है
— वीना आडवाणी तन्वी