मुक्तक/दोहा

आया सावन आया

तन मन हो उठा पुलकित स्वर्ग धरा पर उतरा हो,
शिव- शिवा की भक्ति में जन समूह उमड़ा हो,
हर हर हर महादेव शंभु के जयकारे ने जोश भरा हो,
प्रभु की भक्ति में लीन हो मन का “आनंद” जगा हो ।

पक्षियों ने चहककर नव गीत सुमधुर गुनगुनाया,
प्रकृति ने सुर लय ताल मिलाकर संगीत सुनाया,
धरा ने ओढ़ली धानी चुनरिया लो आया सावन आया,
वसुंधरा पर हर प्राणी आभार कर ईश का मुस्कुराया ।

इन बारिश की बूंदों में सौंधी-सौंधी मिट्टी की महक,
साजन सजनी का प्यार सावन के झूलों की झनक,
कजरी हरियाली तीज रक्षाबंधन त्योहारों की खनक,
भोलेनाथ की दिव्य शक्ति-भक्ति की मधुरम झलक ।

इन बारिश की बूंदों में, खुला मन का आकाश,
पूरी हुई अंतर्मन की, सुप्त अधूरी अतृप्त आस,
रोम-रोम में जागृत हुई नव चेतना सुखद आभास,
मिलन हुआ हो ज्यूं धरती गगन का पास पास ।

जैसे मरुस्थल में आया हो लहराकर बसंत,
जैसे कानों में मधुर मिश्री घोल बोले जब कंत,
जैसे विरान गलियों में सजे हो खुशियों से पंत,
जैसे विरहन सुमनों पर लौटे भंवरें पीवे मकरंद

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु