नमो नारायण
वासुदेव का सुमिरन करते करते
प्रकट हो गए नारायण
देख उन्हें मैं चौंका
पूछ लिए उनसे
तुम नारायण हो
या कोई छलिया और प्रपंच
विश्वास नहीं हो रहा मुझको
सामने देख तुझे
चलो मान लेता हूँ
नारायण ही हो
अच्छा तो यह बतला
तू है जग पिता समदर्शी है
फिर क्यों भेद
किया अपनी संतानों से
किसी को दी
खुशियां ही खुशियाँ
और किसी को दिया
अंबार गमों का
नारायण मुस्कुराये
अपनी चिरपरिचित मोहक अदा से
बोले वत्स
तू है नादान
न मैं देता ख़ुशी
न देता गम
किसी को
जो भी पाता मानस है
सब उसके कर्मो का ही
लेखा जोखा है
जो वो देता लोगों को
वोह ही वापस पाता है
इसमें मेरा क्या है दोष बता
इतना कह
लुप्त हो गया प्रकाश बिंदु वो