लघुकथा

सही दिशा

” माते, वंदन, सुप्रभात।”

” कौन हो आप?”

” हमारी निद्रा भंग करने का दुस्साहस?”

“कितना सुंदर सपना देख रहे थे हम।”

“आने का प्रयोजन?”

” बिना स्वार्थ  कोई  किसी को याद नहीं करता।”

” माते, जागो। हम स्वयं प्रभु आपसे सविनय विनंती करने आये है।

आप जगत जननी हो।

स्वयंसिध्दा हो। जागो, सपनों को साकार करने।

मानवता को अलंकृत  कर सहेजने का महती कार्य भूल गयी हो आप।

संस्कार रोपण कर, धर्मानुचरण से धरा पर प्रेम हरियाली बिछानी है आपको।

आप देवी हो, दुर्गा हो, अंबिका हो। प्रभु की सर्वोत्तम कृति हो।”

” बराबरी का आलाप छोडो आप। आप जननी, माता हो। अपनी जिम्मेदारी निभाओ।”

” कोमल कलियां मसलते हाथों को काट दो। धरा से पाप वृत्ति मिटा दो।”

आँखें मसलते सौम्या ऊठ बैठी।

” क्या स्वयं प्रभु हमें चेताने आये थे?”

किटी पार्टी, एक सीप, ताश के पत्ते ढहढहाकर गिर पडे।

अपने आप से सुधार का वादा कर, संकल्प किया उस ने,

धरा-गगन के साथ ही मन प्रदुषण से मुक्त सुंदर जगत होगा हमारा।

भूली-भटकी है जीवन धारा।

जीवन को सही दिशा, सही मोड देना होगा। 

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८