धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

भगवान गणेश का पूजा

पौराणिक कथा और सार्वजनिक महोत्सव बनने का कारण व वर्तमान स्थिति
हमारे धर्म में हर त्यौहार को मनाने में कोई न कोई पौराणिक कथा है। इसी वजह से हर पर्व से जुड़कर बेहद धूमधाम से मनाते हैं। गणेश चतुर्थी मनाने के पीछे भी पौराणिक कथा है। यह त्यौहार भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी तिथि से शुरू होता है,और लगातार 10 दिनों के बाद 11वें दिन अनंतचतुर्दशी के दिन विसर्जन कर दिया जाता हैं।

गणेश चतुर्थी मनाने के पीछे पौराणिक कथा
माना जाता है कि भगवान गणेश का जन्म माँ पार्वती के उबटन के मैल से हुआ था। एक दिन माता पार्वती स्नान के लिए जा रही थी और पुत्र गणेश को माँ पार्वती ने आदेश दिया कि कोई भी आए उन्हें अंदर प्रवेश न करने दिया जाए। भगवान गणेश ने अपनी माता का आदेश मानते हुए भगवान शिव को अंदर जाने की अनुमति नहीं दी। भगवान शिव ने हर प्रयास किया लेकिन गणेश जी ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। जिससे शिव जी को गुस्सा आ गया और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी पर वार कर दिया और उनका सर धड़ से अलग हो गया। उसके बाद माता पार्वती अपने पुत्र को मृत देख रोने लगी। तब भगवान शिव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने आदेश दिया कि जो भी जीव पहले दिखे उसका सर ले आएं। सबसे पहले उन्हें हाथी दिखा तो उन्होंने उस हाथी का सिर को गणेश जी के शरीर से जोड़ दिया और उनमें जान डाल दी। तब से उनका नाम गणपति, गजानन रख दिया गया और आशीर्वाद के रूप में यह वरदान दिया गया कि इनकी पूजा सबसे पहले की जाएगी और यदि ऐसा नहीं हुआ तो उनकी पूजा सफल नहीं मानी जाएगी।

सार्वजिक तौर पर मनाये जाने का कारण
मुख्य रूप से इस त्यौहार का चलन 1893 में बाल गंगाधर तिलक के द्वारा हुआ था। उस समय अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद की जा रही थी और तिलक जी को इसके लिए एक मंच की आवश्यकता थी। गणेश चतुर्थी उन्हें अवसर की तरह प्रतीत हुआ तभी से यह त्योहार सार्वजनिक तौर पर मनाया जाने लगा,तब से समय हर मोहल्ले में चहल-पहल रहती है।गणपति विसर्जन के दिन की धूमधाम देखते ही बनती है। लोग बाजे-गाजे के साथ नाचते-खेलते हुए गणेशजी की मूर्तियों को विसर्जन के लिए समुद्र, नदी या तालाब की ओर ले जाते हैं। वे गणेशजी से दूसरे वर्ष जल्दी आने का अनुरोध करते हैं। गणपति की मूर्तियाँ समुद्र, नदी या तालाब के जल में विसर्जित कर दी जाती हैं।

वर्तमान स्थिति
आज भगवान गणेश की बड़े बड़े प्रतिमा व पंडाल बनाने की प्रतिस्पर्धात्मक हो चली हैं।फूहड़ संगीत चलते है पंडाल व भगवान गणेश के दर्शन के लिए अलग अलग केटेगरी(वी आई पी,सामान्य) कर आडम्बर व व्यापार बना लिया गया है लोग इस दौरान भक्ति भाव व मूल उद्देश्य प्रेरणाएं से कोसों दूर होते जा रहे हैं इनको मनाने वालों में एकता नाम मात्र की रह गई है। हमें एक बार फिर से संगठित होकर ख़ुशी व धूमधाम से मनाना चाहिए जिससे समाज में एकता व भाईचारा बढ़ सके। तभी हमारी पूजा सार्थक हो सकेगी। अब हमें हमे विचार करने कि जरूरत है कि कैसा सनातन हमे स्वीकार है??

— त्रिभुवन लाल साहू

त्रिभुवन लाल साहू

बोड़सरा,जाँजगिर ,छत्तीसगढ़ सेवा:जूनियर इंजीनयर,,स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड,,भिलाई,,छत्तीसगढ़